व्रत त्यौहार
उत्पन्ना एकादशी: आस्था, पौराणिकता और मोक्ष का पर्व…व्रत से आध्यात्मिक ऊर्जा का होता है स्रोत संचार
उत्पन्ना एकादशी भगवान विष्णु की महाशक्ति मां एकादशी के जन्म की पावन तिथि का अनुपम पर्व है। यह दिन केवल व्रत और पूजा का अवसर नहीं है। आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है, जो भक्तों को पापों से मुक्त कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
By Dhirendra Kumar Sinha
Publish Date: Tue, 26 Nov 2024 08:29:29 AM (IST)
Updated Date: Tue, 26 Nov 2024 02:15:14 PM (IST)
HighLights
- संस्कारधानी में मनेगा भक्ति का उत्सव ।
- “मां एकादशी” के जन्म का अनुपम पर्व।
- लक्ष्मीनारायण मंदिर में विशेष आयोजन।
नईदुनिया प्रतिनिधि,बिलासपुर। बिलासपुर में यह पर्व परंपरा और भक्ति की गहराइयों को जीवंत करता है। लक्ष्मीनारायण मंदिर, वेंकटेश मंदिर, श्री राम मंदिर और खाटू श्याम मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना के साथ भक्ति की अनुपम धारा बहेगी।
इस दिन का प्रत्येक क्षण भक्तों को विष्णु कृपा का अहसास कराएगा।ज्योतिषाचार्य पंडित वासुदेव शर्मा बताते हैं कि विष्णु पुराण और पद्म पुराण के अनुसार इस दिन व्रत रखने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। दैत्यराज मुरासुर के वध के लिए भगवान विष्णु की शक्ति से उत्पन्न दिव्य कन्या ने मुरासुर का अंत किया।
भगवान ने उसे “एकादशी” नाम देकर वरदान दिया कि जो भी इस तिथि को व्रत करेगा। उसके सभी पाप नष्ट होंगे और मोक्ष प्राप्त होगा। नारद पुराण के अनुसार इस दिन भक्त उपवास रखकर द्वादशी को भगवान श्रीकृष्ण की गंध, पुष्प और धूप आदि से पूजा करते हैं। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दी जाती है। माना जाता है कि इस व्रत का पालन करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
बिलासपुर में विशेष आयोजन
बिलासपुर में उत्पन्ना एकादशी के अवसर पर घरों और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। लक्ष्मीनारायण मंदिर (बुधवारी बाजार), वेंकटेश मंदिर (सिम्स चौक), श्री राम मंदिर (तिलक नगर), और खाटू श्याम मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ेगी। इन मंदिरों में विशेष सजावट और भगवान की विशेष आरती का आयोजन होगा।
आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार
उत्पन्ना एकादशी का यह व्रत भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और पापों से मुक्ति दिलाने का शुभ अवसर है। इस पर्व से जीवन में मोक्ष और आध्यात्मिक शांति का मार्ग प्रशस्त होता है। बिलासपुर के मंदिरों में इस दिन की भक्तिपूर्ण आभा देखने के लिए लोग बड़ी संख्या में जुटते हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय और पवित्र बन जाता है।
व्रत से आध्यात्मिक ऊर्जा का होता है स्रोत संचार
हमारे शरीर में असंयमित जीवन जीने के कारण जो अशुद्धियां और अनियमितताएं आ जाती हैं, उनके निवारण का सफल उपाय व्रताचरण को कहा गया है। अन्न खाने से मादकता शरीर में आलस्य आने लगता है। जिससे पूजा-उपासना से उत्पन्न आध्यात्मिक शक्ति नष्ट होने लगती है।
व्रत से हमारा शरीर और मन शुद्ध बनता है, आत्मविश्वास बढ़ता है और संयम की वृत्ति का भी विकास होता है। आत्मविश्वास हमारी शक्तियों को बढ़ाता है और संयम से शक्तियों का व्यय घटता है। इस प्रकार व्रत से आत्मशोधन और शक्ति दोनों लाभ प्राप्त होते हैं।
इंद्रियों, विषय-वासना और मन पर काबू पाने के लिए उपवास एक अचूक साधन माना गया है। गीता में कहा गया है-विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।
चिकित्सकों के मत में भी व्रत और उपवास रखने से अनेक शारीरिक-मानसिक बीमारियों में लाभ मिलता
सप्ताह में एक दिन का व्रत करने से हमारे आंतरिक अंगों को विश्राम करने और सफाई करने का मौका मिलता है, जिससे शारीरिक और मानसिक शक्ति तथा आयु बढ़ती है। इसके अलावा व्रतानुष्ठान द्वारा आधिभौतिक, आध्यात्मिक एवं आधिदैविक त्रिविध कल्याण प्राप्त होता है।
व्रत त्यौहार
Makar Sankranti 2025: सूर्य के उत्तरायण का पर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी को, सुबह 7 बजकर 59 मिनट पर मकर राशि में होगा प्रवेश
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार, सूर्य की मकर संक्रांति को शुभ माना जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर गमन करने लगते हैं। यह समय सकारात्मकता, धर्म, कर्म तथा मांगलिक कार्यों के लिए विशेष शुभ माना जाता है।
By Arvind Dubey
Publish Date: Tue, 17 Dec 2024 12:56:30 PM (IST)
Updated Date: Tue, 17 Dec 2024 01:02:37 PM (IST)
HighLights
- सूर्य के राशि परिवर्तन को सूर्य की संक्रांति कहा जाता है।
- पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।
- सूर्य के मकर में प्रवेश करते ही खरमास का समापन होगा।
नईदुनिया, उज्जैन। सूर्य के उत्तरायण का पर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाएगा। इस दिन सुबह 7 बजकर 59 मिनट पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा। ज्योतिष के जानकारों के अनुसार, जब सूर्य का प्रवेश दिन में हो या सुबह सूर्योदय के तीन मुहूर्त के आसपास हो, तो मकर संक्रांति का अनुक्रम बनता है।
धर्मशास्त्र की इसी मान्यता के अनुसार, 14 तारीख को मकर संक्रांति मनाई जाएगी। मोक्षदायिनी शिप्रा में पर्व स्नान होगा। ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया, सूर्य के राशि परिवर्तन को सूर्य की संक्रांति कहा जाता है। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
सूर्य की मकर संक्रांति शुभ
- सूर्य सिद्धांत की मान्यता के अनुसार, 14 जनवरी मंगलवार को पुनर्वसु नक्षत्र, विषकुंभ योग एवं बालव करण तथा कर्क राशि के चंद्रमा की साक्षी में सूर्य देवता का धनु राशि को छोड़कर के मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
- मकर राशि में प्रवेश होते ही सूर्य की मकर संक्रांति कहलाएगी। यह समय सुबह 7.59 पर होगा। सूर्य के मकर में प्रवेश करते ही खरमास का समापन होगा तथा उत्तरायण का पक्ष आरंभ हो जाएगा।
- मांगलिक कार्य आरंभ होंगे। मकर संक्रांति का पर्व काल होने से यह स्नान, दान, तर्पण, पितरों के निमित्त श्रद्धा व्यक्त करने का दिवस है। इस दिन अन्नदान, वस्त्रदान करने का विशेष महत्व है।
- तांबा, चांदी अथवा सोने के कलश में काले तिल भरकर के दान करने का महत्व भी बताया गया है। इस दिन जल में काले तिल डालकर स्नान करने से गरीबी दूर होती है तथा रोग, दोष समाप्त होते हैं।
व्यापार में उतार चढ़ाव, भारत लाए जा सकते हैं वन्यप्राणी
शास्त्रीय गणना व सूर्य सिद्धांत में संक्रांति के शुभ अशुभ फल में वाहन का विशेष महत्व होता है। इस बार संक्रांति का वाहन व्याघ्र तथा उप वाहन अश्व रहेगा। व्याघ्र पर सवार होकर आ रही संक्रांति वन्य प्राणियों के लिए विशेष प्रभावी रहेगी। इससे बाघ व कूनों में चीतों की संख्या में वृद्धि होगी। अन्य देशों से नए वन्यप्राणी भारत लाए जा सकते हैं। प्राणियों के जीवन पर कुछ संकट की स्थिति भी बन सकती है।
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Vivah Muhurat 2025: कल से शुरू हो रहा खरमास, एक महीने तक नहीं होंगे विवाह…. नए साल में जून तक 40 दिन शुभ मुहूर्त
हिंदू धर्म में मलमास या खरमास को बहुत मान्यता है। इस अवधि में किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इस दौरान ईश्वर की भक्ति की जाती है। सूर्य की स्थिति में बदलाव के कारण यह स्थिति बनती है। अभी 15 दिसंबर से मलमास की शुरुआत होगी, जो 14 जनवरी तक रहेगा।
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Dattatreya Jayanti 2024: मार्गशीर्ष मास की चतुर्दशी आज… अमृत सिद्धि योग में मनाया जा रहा भगवान दत्तात्रेय का प्राकट्योत्सव
देशभर में आज भगवान् दत्तात्रेय की पूजा की जा रही है। मान्यता है कि इस दिन भगवान का नाम जाप करने से कई तरह की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यह दिन इसलिए भी विशेष है क्योंकि आज अमृत सिद्धि योग और बुधादित्य योग बन रहे हैं।
By Arvind Dubey
Publish Date: Sat, 14 Dec 2024 08:25:53 AM (IST)
Updated Date: Sat, 14 Dec 2024 10:23:18 AM (IST)
HighLights
- मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी आज
- मनाया जा रहा भगवान दत्तात्रेय का प्राकट्योत्सव
- बुधादित्य योग में पूजा का मिलता है विशिष्ट फल
नईदुनिया, उज्जैन। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर 14 दिसंबर को अमृत सिद्धि योग में भगवान दत्तात्रेय का प्राकट्योत्सव मनाया जा रहा है। देशभर के प्रमुख मंदिरों में सुबह भगवान दत्तात्रेय का अभिषेक, पूजन व श्रृंगार के उपरांत शाम को गोधूलि बेला में महाआरती होगी।
बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन के दत्त मंदिरों में दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा की स्तुति गुंजायमान होगी। ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया, पंचांग की गणना के अनुसार शनिवार के दिन रोहिणी नक्षत्र की साक्षी में आ रही दत्त जयंती विशिष्ट मानी जा रही है।
इस दिन अमृत सिद्धि योग
- भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अमृत सिद्धि योग को अति महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। व्यावहारिक जीवन में यदि कोई समस्या आ रही है तो उस समस्या का निराकरण करने के लिए अमृत सिद्धि योग का संयोग विशिष्ट साधना उपासना की दृष्टि से श्रेष्ठ माना जाता है।
- इस दौरान रोग दोष की निवृत्ति के लिए भगवान् दत्तात्रेय के विशिष्ट पाठ और मंत्रों का उच्चारण करने से या जाप करने से व्याधियों का निराकरण होता है। बंधन, बाधा समाप्त होती है। विशिष्ट योग के अंतर्गत गुरु मार्ग के माध्यम से दत्त भगवान की साधना करनी चाहिए।
बुधादित्य योग का भी संयोग
पंचांग की गणना के अनुसार, दत्त जयंती पर अमृत सिद्धि योग तो है ही, मूल रूप से सूर्य बुध का वृश्चिक राशि में होकर के बुध आदित्य योग का निर्माण करना भी अपने आप में विशेष है।
महाकाल के समीप प्राचीन दत्त मंदिर
दत्तात्रेय जयंती पर महाकाल मंदिर के हाथी द्वार के समीप स्थित प्राचीन दत्त मंदिर में भगवान का प्राकट्योत्सव मनाया जाएगा। पुजारी संजय दिवटे ने बताया इस स्थान पर ओदुंबर (गुलर) के वृक्ष के नीचे वासुदेव सरस्वतीजी टेमरे स्वामीजी महाराज ने विश्राम किया था।
आज भी इस मंदिर में ओदुंबर का वह वृक्ष तथा स्वामीजी की चरण पादुका मौजूद है। दिवटे ने बताया टेमरे स्वामीजी महाराज भगवान दत्तात्रेय के अवतार माने जाते हैं। दत्त जयंती पर सुबह भगवान का अभिषेक पूजन होगा। शाम को गोधूलि बेला में महाआरती की गई।