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व्रत त्यौहार

अक्षय नवमी : आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन कर भगवान का लिया जाता है आशीर्वाद

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नईदुनिया प्रतिनिधि,बिलासपुर।अक्षय नवमी या आंवला नवमी का पर्व के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने के बाद वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने से भगवान विष्णु और भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है, जिससे घर में धन, संपत्ता, यश, वैभव, अच्छा स्वास्थ्य व सम्मान आता है। ऐसे में इस पर्व को हमारे क्षेत्र में भी बड़े भक्तिभाव व आस्था से मनाया जाता है। मान्यता है कि अक्षय नवमी पर्व पर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से मनचाही इच्छा पूरी होती है इस दिन किए जाने वाले दान का पुण्य कभी क्षय नहीं जाता इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ आंवला पेड़ की पूजा करने का विधान है।

कुष्मांडक नवमी भी कहा जाता

आज के ही दिन भगवान विष्णु ने कुष्मांडक दैत्य को मारा था, जिसके रोम से कुष्मांड-सीताफल की बेल निकली थी, इसीलिए इसे कुष्मांडक नवमी भी कहा जाता है। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का भारतीय संस्कृति का पर्व है क्योंकि आंवला पूजन पर्यावरण के महत्व को दर्शाता है और इसके प्रति हमें जागरूक भी करता है। ऐसे में इस बार भी दस नवंबर को आस्था पूर्वक आंवला नवमीं का पर्व शहर के उद्यानों के साथ ही जहां पर आंवला का वृक्ष होगा, वहां पर इस पर्व को मनाया जाएगा।

महिलाएं इस तरह बनाती हैं सात्विक भोजन

अक्षय नवमी पर महिलाएं घर पर सात्विक भोजन बनाती हैं, इस दिन बनाई जाने वाली सब्जी में महिलाएं सात प्रकार की सब्जियों को एक साथ मिलाकर बनाती हैं। महिलाएं आंवले के पेड़ के नीचे पूजा करने के बाद वहीं पर बैठकर ब्राह्मणों को भोजन कराती हैं और परिवार के लोगों के साथ वहीं भोजन करती हैं। पुण्य पाने के लिए यह किया जाता है

आंवले के वृक्ष का धार्मिक महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिवजी का निवास होता है। अक्षय नवमी के दिन इस वृक्ष के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन किया गया पुण्य अक्षय होता है, यानी यह पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है।

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देवउठनी एकादशी: बिलासपुर में शुभ कार्यों की धार्मिक परंपरा, श्रद्धा व परंपरा का प्रतीक, संस्कृति का अभिन्न हिस्सा

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नईदुनिया प्रतिनिधि,बिलासपुर। संस्कारधानी में देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है। श्रद्धा और परंपरा का प्रतीक यह पर्व यहां की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। इस दिन भगवान विष्णु के दिव्य जागरण के साथ ही मांगलिक कार्यों का शुभारंभ होता है, जिससे पूरे क्षेत्र में भक्ति और उत्सव का माहौल बन जाता है। कोई भी शुभ कार्य इसी दिन से प्रारंभ होता है।

देवउठनी एकादशी के दिन का इंतजार श्रद्धालुओं को पूरे वर्ष रहता है। यहां इसे खास धूमधाम से मनाया जाता है। विशेषकर ग्रामीण अंचल में जहां इस दिन को लेकर अनूठी श्रद्धा देखने को मिलती है। सनातन मान्यता के अनुसार देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु चार माह की दिव्य निद्रा के बाद जागते हैं और इसी के साथ मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है।

बिलासपुर और आसपास के गांवों में इस दिन के बाद ही शहनाईयों की गूंज सुनाई देने लगती है, जो विवाह के उत्सव का प्रतीक है। इस अवसर पर श्रद्धालु तुलसी-शालिग्राम विवाह का आयोजन होता हैं। घरों और मंदिरों में तुलसी और शालिग्राम की सजावट की जाती है और भक्तिभाव से पूजा-अर्चना की जाती है। प्रसिद्ध मंदिरों में जैसे कि रेलवे बुधवारी बाजार स्थिति श्री लक्ष्मीनारायण, वेंकटेश मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है। जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होकर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

पारंपरिक रीति-रिवाज और पूजा विधि

देवउठनी एकादशी पर तुलसी-शालिग्राम का विवाह विधि-विधान से संपन्न किया जाता है। इस पूजा में तुलसी के पौधे को सजीव देवियों के रूप में सजाया जाता है और शालिग्राम को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। तुलसी के पौधे के चारों ओर दीपक जलाकर मंत्रोच्चार के बीच तुलसी और शालिग्राम का विवाह संपन्न होता है। यह विवाह प्रतीकात्मक होता है, लेकिन इसके पीछे आस्था यह है कि इसके बाद ही सभी मांगलिक कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त का द्वार खुलता है।

ग्रामीण क्षेत्रों की विशेष परंपराएं

बिलासपुर के आसपास के गांवों में देवउठनी एकादशी का एक खास रंग देखने को मिलता है। यहां लोग अपने घरों में दीपमालाएं सजाते हैं, और परंपरागत पकवान जैसे कि खीर, पुरी, और लड्डू बनाकर भगवान को भोग अर्पित करते हैं। कुछ स्थानों पर कीर्तन और भजन-गायन की विशेष परंपरा है। जिसमें स्थानीय कलाकार और भक्त मिलकर भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करते हैं।



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Makar Sankranti 2025: सूर्य के उत्तरायण का पर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी को, सुबह 7 बजकर 59 मिनट पर मकर राशि में होगा प्रवेश

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ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार, सूर्य की मकर संक्रांति को शुभ माना जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर गमन करने लगते हैं। यह समय सकारात्मकता, धर्म, कर्म तथा मांगलिक कार्यों के लिए विशेष शुभ माना जाता है।

By Arvind Dubey

Publish Date: Tue, 17 Dec 2024 12:56:30 PM (IST)

Updated Date: Tue, 17 Dec 2024 01:02:37 PM (IST)

Makar Sankranti 2025: सूर्य के उत्तरायण का पर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी को, सुबह 7 बजकर 59 मिनट पर मकर राशि में होगा प्रवेश
मकर संक्रांति से मांगलिक कार्य आरंभ होंगे।

HighLights

  1. सूर्य के राशि परिवर्तन को सूर्य की संक्रांति कहा जाता है।
  2. पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।
  3. सूर्य के मकर में प्रवेश करते ही खरमास का समापन होगा।

नईदुनिया, उज्जैन। सूर्य के उत्तरायण का पर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाएगा। इस दिन सुबह 7 बजकर 59 मिनट पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा। ज्योतिष के जानकारों के अनुसार, जब सूर्य का प्रवेश दिन में हो या सुबह सूर्योदय के तीन मुहूर्त के आसपास हो, तो मकर संक्रांति का अनुक्रम बनता है।

धर्मशास्त्र की इसी मान्यता के अनुसार, 14 तारीख को मकर संक्रांति मनाई जाएगी। मोक्षदायिनी शिप्रा में पर्व स्नान होगा। ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया, सूर्य के राशि परिवर्तन को सूर्य की संक्रांति कहा जाता है। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।

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सूर्य की मकर संक्रांति शुभ

  • सूर्य सिद्धांत की मान्यता के अनुसार, 14 जनवरी मंगलवार को पुनर्वसु नक्षत्र, विषकुंभ योग एवं बालव करण तथा कर्क राशि के चंद्रमा की साक्षी में सूर्य देवता का धनु राशि को छोड़कर के मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
  • मकर राशि में प्रवेश होते ही सूर्य की मकर संक्रांति कहलाएगी। यह समय सुबह 7.59 पर होगा। सूर्य के मकर में प्रवेश करते ही खरमास का समापन होगा तथा उत्तरायण का पक्ष आरंभ हो जाएगा।
  • मांगलिक कार्य आरंभ होंगे। मकर संक्रांति का पर्व काल होने से यह स्नान, दान, तर्पण, पितरों के निमित्त श्रद्धा व्यक्त करने का दिवस है। इस दिन अन्नदान, वस्त्रदान करने का विशेष महत्व है।
  • तांबा, चांदी अथवा सोने के कलश में काले तिल भरकर के दान करने का महत्व भी बताया गया है। इस दिन जल में काले तिल डालकर स्नान करने से गरीबी दूर होती है तथा रोग, दोष समाप्त होते हैं।

व्यापार में उतार चढ़ाव, भारत लाए जा सकते हैं वन्यप्राणी

शास्त्रीय गणना व सूर्य सिद्धांत में संक्रांति के शुभ अशुभ फल में वाहन का विशेष महत्व होता है। इस बार संक्रांति का वाहन व्याघ्र तथा उप वाहन अश्व रहेगा। व्याघ्र पर सवार होकर आ रही संक्रांति वन्य प्राणियों के लिए विशेष प्रभावी रहेगी। इससे बाघ व कूनों में चीतों की संख्या में वृद्धि होगी। अन्य देशों से नए वन्यप्राणी भारत लाए जा सकते हैं। प्राणियों के जीवन पर कुछ संकट की स्थिति भी बन सकती है।



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Vivah Muhurat 2025: कल से शुरू हो रहा खरमास, एक महीने तक नहीं होंगे विवाह…. नए साल में जून तक 40 दिन शुभ मुहूर्त

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हिंदू धर्म में मलमास या खरमास को बहुत मान्यता है। इस अवधि में किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इस दौरान ईश्वर की भक्ति की जाती है। सूर्य की स्थिति में बदलाव के कारण यह स्थिति बनती है। अभी 15 दिसंबर से मलमास की शुरुआत होगी, जो 14 जनवरी तक रहेगा।



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Dattatreya Jayanti 2024: मार्गशीर्ष मास की चतुर्दशी आज… अमृत सिद्धि योग में मनाया जा रहा भगवान दत्तात्रेय का प्राकट्योत्सव

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देशभर में आज भगवान् दत्तात्रेय की पूजा की जा रही है। मान्यता है कि इस दिन भगवान का नाम जाप करने से कई तरह की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यह दिन इसलिए भी विशेष है क्योंकि आज अमृत सिद्धि योग और बुधादित्य योग बन रहे हैं।

By Arvind Dubey

Publish Date: Sat, 14 Dec 2024 08:25:53 AM (IST)

Updated Date: Sat, 14 Dec 2024 10:23:18 AM (IST)

Dattatreya Jayanti 2024: मार्गशीर्ष मास की चतुर्दशी आज… अमृत सिद्धि योग में मनाया जा रहा भगवान दत्तात्रेय का प्राकट्योत्सव
शनिवार के दिन रोहिणी नक्षत्र में दत्त जयंती का ज्योतिष में विशेष महत्व बताया गया है। (फाइल फोटो)

HighLights

  1. मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी आज
  2. मनाया जा रहा भगवान दत्तात्रेय का प्राकट्योत्सव
  3. बुधादित्य योग में पूजा का मिलता है विशिष्ट फल

नईदुनिया, उज्जैन। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर 14 दिसंबर को अमृत सिद्धि योग में भगवान दत्तात्रेय का प्राकट्योत्सव मनाया जा रहा है। देशभर के प्रमुख मंदिरों में सुबह भगवान दत्तात्रेय का अभिषेक, पूजन व श्रृंगार के उपरांत शाम को गोधूलि बेला में महाआरती होगी।

बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन के दत्त मंदिरों में दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा की स्तुति गुंजायमान होगी। ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया, पंचांग की गणना के अनुसार शनिवार के दिन रोहिणी नक्षत्र की साक्षी में आ रही दत्त जयंती विशिष्ट मानी जा रही है।

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इस दिन अमृत सिद्धि योग

  • भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अमृत सिद्धि योग को अति महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। व्यावहारिक जीवन में यदि कोई समस्या आ रही है तो उस समस्या का निराकरण करने के लिए अमृत सिद्धि योग का संयोग विशिष्ट साधना उपासना की दृष्टि से श्रेष्ठ माना जाता है।
  • इस दौरान रोग दोष की निवृत्ति के लिए भगवान् दत्तात्रेय के विशिष्ट पाठ और मंत्रों का उच्चारण करने से या जाप करने से व्याधियों का निराकरण होता है। बंधन, बाधा समाप्त होती है। विशिष्ट योग के अंतर्गत गुरु मार्ग के माध्यम से दत्त भगवान की साधना करनी चाहिए।

बुधादित्य योग का भी संयोग

पंचांग की गणना के अनुसार, दत्त जयंती पर अमृत सिद्धि योग तो है ही, मूल रूप से सूर्य बुध का वृश्चिक राशि में होकर के बुध आदित्य योग का निर्माण करना भी अपने आप में विशेष है।

महाकाल के समीप प्राचीन दत्त मंदिर

दत्तात्रेय जयंती पर महाकाल मंदिर के हाथी द्वार के समीप स्थित प्राचीन दत्त मंदिर में भगवान का प्राकट्योत्सव मनाया जाएगा। पुजारी संजय दिवटे ने बताया इस स्थान पर ओदुंबर (गुलर) के वृक्ष के नीचे वासुदेव सरस्वतीजी टेमरे स्वामीजी महाराज ने विश्राम किया था।

आज भी इस मंदिर में ओदुंबर का वह वृक्ष तथा स्वामीजी की चरण पादुका मौजूद है। दिवटे ने बताया टेमरे स्वामीजी महाराज भगवान दत्तात्रेय के अवतार माने जाते हैं। दत्त जयंती पर सुबह भगवान का अभिषेक पूजन होगा। शाम को गोधूलि बेला में महाआरती की गई।

यहां भी क्लिक करें – पौष मास की शुरुआत 16 दिसंबर से… ग्रहों के राजा सूर्य की आराधना से हर रुका काम पूरा होगा



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