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प्रभावी फर्टिलिटी ट्रीटमेंट – prabhavi fertility treatment
टेक्नोलॉजी ने महिलाओं के लिए कंसीव करना बेहद आसान बना दिया है। कई ऐसे प्रभावी फर्टिलिटी ट्रीटमेंट हैं, जिनकी मदद से महिलाएं अब आसानी से कंसीव कर सकती हैं (IVF and IUI for pregnancy)।
आज के समय में इनफर्टिलिटी एक सामान्य समस्या बन चुकी है। ज्यादातर महिलाओं को कंसीव करने में परेशानी आ रही है। वहीं बहुत सी महिलाएं ऐसी भी हैं, जो करियर और जीवन के गोल को अचीव करने के बाद बेबी प्लेन करना चाहती हैं। हालांकि, इसमें कोई बुराई नहीं है, परंतु बढ़ती उम्र के साथ फर्टिलिटी कम होती जाती है, जिसकी वजह से उन्हें बाद में बेबी कंसीव करने में परेशानी आती है। हालांकि, टेक्नोलॉजी ने महिलाओं के लिए कंसीव करना बेहद आसान बना दिया है। कई ऐसे प्रभावी फर्टिलिटी ट्रीटमेंट हैं, जिनकी मदद से महिलाएं अब आसानी से कंसीव कर सकती हैं (IVF and IUI for pregnancy)।
पर अभी भी बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें फर्टिलिटी ट्रीटमेंट से जुड़ी जानकारी नहीं है। जिसकी वजह से वे इनका लाभ नहीं उठा पाती। इसलिए यह बेहद महत्वपूर्ण है, कि सभी महिलाओं को आधुनिक तकनीक से जुड़ी जानकारी होनी चाहिए। डॉ. मितुल गुप्ता, सीनियर कंसल्टेंट ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी, कोकून हॉस्पिटल, जयपुर ने कुछ खास तरह के इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट के बारे में बताया है। यदि आपको भी नेचुरली कंसीव करने में परेशानी हो रही है, तो इस लेख के माध्यम से जानें इन्हें कंसीव करने के अन्य प्रभावी विकल्प (IVF and IUI for pregnancy)।
एक्सपर्ट से जानिए कुछ बेहद प्रभावी फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के बारे में (IVF and IUI for pregnancy)
डॉ. मितुल गुप्ता कहती हैं “आजकल की खराब जीवनशैली और अन्य कारणों क़े चलते कई कपल्स बच्चे को जन्म देने में कई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में फर्टिलिटी ट्रीटमेंट एक बड़ा सहारा बनकर उभरा है। इस ट्रीटमेंट्स के जरिए बच्चे को जन्म देने की उम्मीदें बढ़ जाती हैं।”
आईवीएफ (IVF)
सबसे पहले बात करते हैं आईवीएफ (IVF) की, इसे टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया भी कहा जाता है। इसमें महिला के अंडे यानी कि एग और पुरुष के शुक्राणु यानी कि स्पर्म को लैब में मिलाया जाता है और उसके बाद जो भ्रूण तैयार होता है, उसे महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है या यूं कहें कि इंप्लांट किया जाता है। ये प्रक्रिया उन लोगों के लिए कारगर है, जिन्हें प्राकृतिक रूप से बच्चा कंसीव करने में दिक्कत आ रही है। महिला की उम्र ज्यादा हो या ट्यूब ब्लॉकेज की समस्या होने पर इस प्रक्रिया को अपनाया जाता है (IVF and IUI for pregnancy)।
आईवीएफ के सक्सेस रेट की बात करें तो नेशनल हेल्थ सर्विस के अनुसार 2019 में, 35 वर्ष से कम आयु की महिलाओं के लिए IVF उपचारों का प्रतिशत 32% था, 35 से 37 वर्ष की आयु की महिलाओं के लिए 25%, 38 से 39 वर्ष की आयु की महिलाओं के लिए 19%, 40 से 42 वर्ष की आयु की महिलाओं के लिए 11%, 43 से 44 वर्ष की आयु की महिलाओं के लिए 5% और 44 से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए 4% था। भारत में, IVF थे सक्सेस रेट 30-35% है, कुछ बेहतरीन क्लीनिक 35 वर्ष से कम आयु की महिलाओं के लिए 40-45% की सफलता दर की रिपोर्ट करते हैं। ग्लोबल रेट की बात करें तो युवा महिलाओं में औसत IVF सफलता दर लगभग 40% है।
आईयूआई (IUI)
इसी तरह आईयूआई (IUI) दूसरी प्रमुख प्रक्रिया है, जो थोड़ी सरल मानी जाती है। इसमें पुरुष के स्पर्म को साफ करके सीधे महिला के गर्भाशय में डाला जाता है। ये उन कपल्स के लिए बेहतर है, जिनमें हल्की समस्या हो, जैसे स्पर्म काउंट कम होना या महिला के अंडाशय से संबंधित मामूली दिक्कतें आदि। इस प्रक्रिया को पूरी तरह से मेडिकल टीम की निगरानी में सुरक्षित तरीके से अपनाया जाता है।
आईयूआई के सक्सेस रेट की बात करें तो जैसे-जैसे महिला की उम्र बढ़ती है, उनका एग काउंट कम होता जाता है, साथ ही एग क्वालिटी भी कम हो जाती है। उम्र के हिसाब से IUI के लिए गर्भावस्था दर इस प्रकार है, 20 से 30 वर्ष की आयु: 17.6%, 31 से 35 वर्ष की आयु: 13.3%, 36 से 38 वर्ष की आयु: 13.4%, 39 से 40 वर्ष की आयु: 10.6%, 40 से अधिक आयु: 5.4%।
यहां कुछ अन्य तरीके भी हैं जो पेरेंट्स बनने में आपकी मदद कर सकते हैं
डॉ. मितुल गुप्ता के अनुसार, ओव्यूलेशन इंडक्शन, सरोगेसी, और डोनेशन जैसी अन्य तकनीकें भी अच्छी हैं।
ओव्यूलेशन इंडक्शन में दवाओं की मदद से महिला के अंडाशय को उत्तेजित किया जाता है, ताकि अंडे ठीक से विकसित हो सकें।
सरोगेसी उन महिलाओं के लिए एक विकल्प है, जो गर्भधारण नहीं कर सकतीं। इन प्रक्रियाओं के जरिए कई कपल्स की ज़िंदगी में खुशियां आई हैं।
हालांकि, ये ट्रीटमेंट्स थोड़े खर्चीले और समय लेने वाले हो सकते हैं, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर की देखरेख में इन्हें सफलता के साथ पूरा किया जा सकता है।
नोट: अगर आपको भी इस विषय से जुड़ी अधिक जानकारी चाहिए, तो आपको किसी फर्टिलिटी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
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Soya Chaap : एक आहार विशेषज्ञ से जानते हैं वेजिटेरियन्स के लिए सोया चाप हेल्दी है या नहीं
सोया में पाए जाने वाले मिनरल्स की वजह से लोग सोया चाप (Soya Chaap) को भी हेल्दी बताते हैं। लेकिन इसके फायदे के साथ इसके कुछ नुकसान भी हैं।
सोयाबीन का नाम आपने जब भी सुना होगा, यह सुना होगा कि वे न्यूट्रीएंट्स (Nutrients) का भंडार हैं, उनमें मिनरल्स अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। प्रोटीन, विटामिन, जिंक, कैल्शियम और न जाने क्या क्या। यह सही भी है, सोया हमारे स्वस्थ रहने के लिए एक जरूरी खाद्य पदार्थ है। लेकिन इससे बनता है एक और प्रोडक्ट, जिसे सोया चाप कहते हैं। लोग अक्सर सोया में पाए जाने वाले मिनरल्स की बातें कर के इसे खाना हेल्दी बताते हैं। अपने इन्हीं गुणों की वजह से सोयाबिन हृदय संबंधित बीमारियों के लिए भी फायदेमंद बताया जाता है। लेकिन बात इतनी भर नहीं है, इसके फायदे के साथ इसके कुछ नुकसान (soya chaap ke fayde aur nuksan) भी हैं। खासकर सोया चाप के, तो चलिए शुरू करते हैं।
क्या है सोया चाप (What is Soya Chaap)
सोयाचाप एक शाकाहारी डिश है जो अमूमन सोया प्रोटीन से बनती है। मांस-मछली से दूर रहने वाले अर्थात शाकाहारियों के लिए यह एक अच्छा ऑप्शन है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स या फिर फाइबर-कैल्शियम सब अच्छी मात्रा में होते हैं। स्वाद के मामले में भी ये अव्वल है। इसलिए अगर आप वेज हैं, तो यह आपके लिए सुपरफूड हो सकता है।
सोया चाप खाने के फायदे (Benefits of Soya chaap)
1. प्रोटीन का स्रोत (Source for Protein)
सोयाबिन में प्रोटीन अच्छी मात्रा में होता है ये मेडिकली वेरीफाइड है। कई बार प्रोटीन की कमी से जूझते लोगों को डॉक्टर्स सोया से जुड़ी डिश खाने की सलाह भी देते हैं। दरअसल, प्रोटीन हमारे शरीर की मरम्मत का जिम्मा सम्हालता है। मांसपेशियों के विकास और चोटिल मांसपेशियों को ठीक करने की जिम्मेदारी प्रोटीन की ही होती है। ऐसे में मांसपेशियों से जुड़ी समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए सोया चाप एक अच्छा ऑप्शन है। शरीर को प्रोटीन मिलना Soya Chaap Ke Fayde में से एक है।
2. स्वस्थ हृदय के लिए (Soya for Healthy Heart)
यह हम सबको पता है कि जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ता है तो दिल की बीमारियों से जुड़े खतरे भी बढ़ जाते हैं। सोया चाप ऐसे वक्त में आपकी मदद कर सकता है। दरअसल सोया से जुड़े प्रोडक्ट्स शरीर में कोलेस्ट्रॉल कम करते हैं जिससे दिल की बीमारियों से जुड़े खतरे भी कम हो जाते हैं।
3. वजन कंट्रोल करने में मददगार (Soya for Weight Control)
फैट यानी वसा ऐसी चीज है जो शरीर के लिए जरूरी भी है लेकिन इसके बढ़ने से वजन बढ़ने का खतरा भी मंडराने लगता है। सोया से मिलने वाला प्रोटीन इसे कंट्रोल करने में आपकी मदद कर सकता है। सोया प्रोटीन शरीर से अतिरिक्त फैट को हटाता है, जिससे वजन बढ़ने का खतरा अपने आप कम होने लगता है। इसके साथ ही मांसपेशियों को मजबूत करने वाला सोया प्रोटीन का गुण भी वजन कंट्रोल में रखने के लिए सहायक है क्योंकि अगर आपकी मांसपेशियाँ मजबूत रहती हैं तो वजन बढ़ने का खतरा कम हो जाता है।
4. हड्डियां होंगी मजबूत (Soya for Healthy Bones)
हमारे शरीर की हड्डियों के लिए कैल्शियम कितना जरूरी है, यह बताने की भी बात नहीं। नॉर्मल हड्डी की चोट में भी डॉक्टर्स कैल्शियम की गोली खाने को दे ही देते हैं। सोया इस मामले में प्राकृतिक तौर पर अमीर है क्योंकि सोया प्रोडक्ट्स में कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में मिलता है, इसी की वजह से सोया से बने डिश खाने में हड्डियों को अतिरिक्त ऊर्जा और पोषण मिलते हैं।
कैसे खाएं सोया चाप? (How to eat Soya Chaap)
- सोया चाप को खाने से पहले ये सुझाव दिमाग़ में बिठा लें कि इसे बहुत ज्यादा मात्रा में नहीं लेना है। अगर आप इसे खाने के तौर पर नहीं ले रहे हैं तो दिन भर में एक या दो बार सोयाचाप खाना पर्याप्त है, अगर आप इसे ज्यादा खाएंगे तो पेट की समस्याओं के शिकार होंगे।
- इसके अलावा यह भी कोशिश करनी है कि सोया चाप तला हुआ ना हो, गिल करके या बेक करके खाने में सोया चाप के मिनरल्स बचे रह जाते हैं और ये आपको फायदे के अलावा नुकसान नहीं पहुंचाते।
- अगर आप पहले से पेट की समस्याओं से जूझ रहे हैं तो इस बात का ख्याल रखें कि थोड़ा-थोड़ा सोया चाप खाने से शुरुआत करें और पानी ज्यादा पियें।
- एक अंतिम लेकिन जरूरी बात, कम प्रोसेस्ड सोया चाप ही खाने के इस्तेमाल में लाएं। कंपनियां इन दिनों सोया को ज्यादा प्रोसेस करके मार्केट में उतार रही हैं,जिसके नतीजतन उसमें शुगर,नमक ज्यादा रहता है। यह डायबिटिक या हाई ब्लडप्रेशर वाले लोगों के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
डाइटीशियन चिराग बड़जात्या के अनुसार,
सोया चाप सोयाबीन से बनाया जाता है जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। ये प्रोटीन का एक बेहतरीन स्रोत हो सकता है, लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब सड़क पर बेचने वाले या रेस्टोरेंट्स वाले इसको नरम और फूला हुआ बनाने के लिए इसमें बहुत सारा मैदा मिला देते हैं। सोया चाप में मैदा आपके शरीर में अनावश्यक कैलोरी बढ़ा सकता है जिससे आपको नुकसान पहुंचेगा। कुछ लोग स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें बहुत सारी मेयोनेज़ भी मिलाते हैं, जिससे सोया चाप आपके दिल के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायी हो जाता है क्योंकि मेयोनेज़ में फैट की मात्रा बहुत अधिक होती है। चिराग के अनुसार, अगर आप बाहर सोया चाप खाना पसंद करते हैं तो मेरी सलाह है कि महीने में सिर्फ एक बार ही खाएं। लेकिन अगर आप इसे घर पर बना रहे हैं तो रोजाना इसका लुत्फ उठा सकते हैं।
सोया चाप के नुकसान (Harmful Effects of Soya Chaap)
- सोया में फाइबर की मात्रा ज़्यादा होती है। और जब आप चाप तल कर बनाते हैं तो यह फाइबर हानिकारक बन सकता है। फाइबर की ज़्यादा मात्रा आपके पेट में पाचन (Digestion) सम्बंधी समस्याएं पैदा कर सकता है।
- ये समस्या अक्सर महिलाओं में ज़्यादा होती है। दरअसल, सोया में फाइटोएस्ट्रोजन होता है जिसको ज्यादा मात्रा में खाने से महिलाओं में हार्मोनल इम्बैलेंस (Harmonal Imbalance) जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसी कारण महिलाओं के पीरियड्स वक्त पर नहीं आते। कभी कभी वजन बढ़ जाने का ख़तरा भी होता है।
- कुछ भी नया खाने को ट्राई करने से पहले आपको किससे एलर्जी है, इस बारे में जानना ज़रूरी है। इसी तरह कुछ लोगों को सोया प्रोडक्ट्स से एलर्जी हो सकती है।
- कई बार बाज़ार में मिलने वाले सोया प्रोडक्ट्स ज्यादा प्रोसेस्ड होते हैं,जिसमें आर्टिफिशियल फ्लेवर ऐड होते हैं। यह शरीर के लिए नुकसानदायक है।
- सोया प्रोडक्ट्स को अगर आप ज्यादा मात्रा में खा रहे हैं तो आपको थायरॉइड की प्रॉब्लम्स हो सकती है,जिससे हाइपोथायरॉइड जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
कुल जमा बात यह है कि सोया चाप के नुकसान भी हैं और फायदे भी। लेकिन यह निर्भर आप पर करता है कि आप इसके फायदे लेना चाहते हैं या नुक़सान। यह सब ज़्यादातर निर्भर इस पर करता है कि आप इसे किस मात्रा में ले रहे हैं। खाने-पीने की चीजों में असंतुलन आपको स्वास्थ्य सम्बंधी गम्भीर समस्या दे सकता है। इसलिए सावधानी ज़रूरी है।
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knee replacement : घुटने के दर्द से आराम दिलाएगा घुटने का प्रत्यारोपण
हड्डियों और जोड़ों का दर्द इन दिनों कॉमन होता जा रहा है। महिलाओं में उम्र बढ़ने के साथ साथ यह स्थायी होता जाता है। कई बार तो यह उस लेवल पर पहुंच जाता है, जहाँ दवाइयों से भी यह दूर नहीं होता। यही वजह है कि डॉक्टर नी ट्रांसप्लांट की सलाह देते हैं। जानिए कितनी सुरक्षित है ये प्रक्रिया।
लोग अक्सर बढ़ती उम्र के साथ या किसी हड्डी की चोट के साथ मिले दर्द को यह मान कर सहते रहते हैं कि यह किस्मत है। पैर में दर्द ही तो हो रहा है,ज़िन्दगी तो नहीं खतरे में है? लेकिन सवाल यह है कि ज़िन्दगी तो बची है लेकिन यह किस तरह की जिंदगी है जहाँ आप भाग कर बस ना पकड़ सकें। ना ही किसी बच्चे के साथ थोड़ी देर खड़े हो कर खेल पाएं। ऐसे ही किसी सवाल से जूझते हुए किसी डॉक्टर या साइंटिस्ट ने पहली बार किसी मरीज़ के घुटने खोले होंगे और उसमें आर्टिफिशियल जॉइंट लगा दिए होंगे। वो थक गया होगा दवा देते देते और मरीज़ थक गया होगा दवा खाते खाते। आज के ज़माने में हम उसे हिंदी में घुटने का प्रत्यारोपण कहते हैं और अंग्रेज़ी में उसे knee replacement कहा जाता है? कैसे और कब किया जाता है घुटने का ये प्रत्यारोपण और क्या ये सेफ है? किन लोगों को इसके लिए आगे बढ़ना चाहिए और किन्हें इससे बचना चाहिए। आज सब विस्तार से समझेंगे।
क्या होता है घुटना प्रत्यारोपण? (What is knee replacement)
घुटने का प्रत्यारोपण (knee replacement) किसी सर्जरी की तरह ही होता है। इसमें घुटने की प्रभावित जगह को या जहाँ डैमेज है उस जगह को आर्टिफिशियल जॉइंट से जोड़ दिया जाता है। यह उन लोगों के लिए ही डॉक्टर रिकमेंड करते हैं जिनके ऊपर दवाईयां बेअसर हों या उनकी चोट इतनी गहरी हो कि बगैर ट्रांसप्लांट उनका इलाज नहीं हो सकता।
कब होता है नी रिप्लेसमेंट
1.दवाइयां हों बेअसर (If Medicines are not working)
अगर घुटने में इतना दर्द हो कि चलने-फिरने, बैठने-उठने, और सामान्य नॉर्मल एक्टिविटीज भी कठिन लगने लगें और ये दर्द दवाइयों और इलाज़ से ठीक ना हो रहा हो।
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ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis)
नी ट्रांसप्लांट का सबसे आम कारण है। दरअसल इसमें घुटने की हड्डियों के बीच मौजूद कार्टिलेज घिस जाता है और हड्डियां आपस में रगड़ने लगती हैं।
इसी वजह से बुढापे में अक्सर घुटनों में सूजन और दर्द होने लगता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस के ज्यादातर केसेस में डॉक्टर नी रिप्लेसमेंट (knee replacement) रिकमेंड करते हैं।
3.रूमेटॉइड आर्थराइटिस (RA)
ये एक ऐसी ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम अपने ही टिशूज और जॉइंट्स को नुकसान पहुंचाने लगता है। बार बार हार्मोनल चेंजेज से गुजरने के कारण यह बीमारी महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होती है।
इसका ज़्यादातर प्रभाव जोड़ों पर ही पड़ता है। परिणामस्वरूप दर्द और सूजन हो जाते हैं। इस केस में भी डॉक्टर्स नी रिप्लेसमेंट (knee replacement) रिकमेंड करते हैं।
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चोट या फ्रैक्चर (Knee Fracture)
कई बार यह भी हो जाता है कि कोई फ्रैक्चर ऐसा हो जिससे हमारा घुटना उबर ना सके। या कोई चोट इतनी गम्भीर हो जो दवाइयों से नहीं ठीक हो रही हो और मरीज़ का दर्द बढ़ता ही जा रहा हो। ऐसी सूरत में भी नी रिप्लेसमेंट (knee replacement) किया जाता है।
क्या सेफ है नी ट्रांसप्लांट? (Is Knee Transplant Safe?)
ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉक्टर वत्सल खेतान के अनुसार यह प्रक्रिया पूरी तरह सेफ है। इसकी सफलता की दर लगभग 90-95 परसेंट है। फिर यह मरीज़ के शरीर पर भी निर्भर करता है। उन्होंने बताया कि इस रिप्लेसमेंट (knee replacement) में लगभग एक डेढ़ घण्टे लगते हैं। सर्जरी के कुछ दिन बाद मरीज़ पूरी तरह से अपने पैरों पर चल सकता है।
नी रिप्लेसमेंट के ख़तरे क्या? (Harmful Effects of knee replacement)
- ट्रांसप्लांट के बाद अक्सर इंफेक्शन होता है। डॉक्टर्स इसको रोकने के लिए दवाएं देते हैं लेकिन दवा खाने में थोड़ी भी लापरवाही बड़ी समस्या दे देती है।
2.सर्जरी के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग की समस्या से अक्सर डॉक्टर जूझते हैं। हालांकि यह समस्या कंट्रोल की जा सकती है लेकिन कई बार इसका परिणाम कमज़ोरी के तौर पर सामने आता है।
- नी रिप्लेसमेंट (knee replacement) एक सर्जिकल प्रॉसेस है जिसमे घुटने के आसपास की नसों को नुकसान होने का खतरा भी होता है।
- कुछ लोगों को आर्टिफिशियल जोड़ (Artificial Joint) के मटेरियल से एलर्जी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
- जैसा डॉक्टर वत्सल खेतान ने कहा कि इलाज़ हमेशा मरीज़ की परिस्थितियों पर डिपेंड करता है, उसी तरह कुछ मरीजों को सर्जरी के बाद भी दर्द की समस्या हो सकती है। ऐसा होने पर तुरन्त अपने डॉक्टर से मिलें।
- ट्रांसप्लांट (knee replacement) के बाद अक्सर पैरों में ब्लड क्लॉटिंग का खतरा होता है। डॉक्टर इसी लिए खून को पतला करने की दवाई देते हैं।
किन्हें नहीं कराना चाहिए घुटने का प्रत्यारोपण? (When and Who Should not to go with Knee Replacement?)
- जिनके घुटने में पहले से इंफेक्शन हो उन्हें इससे बचना चाहिए क्योंकि सर्जरी की वजह से इन्फेक्शन फैल सकता है।
- डायबिटीज और हार्ट पेशेंट्स को भी नी ट्रांसप्लांट (knee replacement) नही कराना चाहिए।
- जिनका वजन ज्यादा हो, उन्हें यह ट्रांसप्लांट नहीं कराना चाहिए क्योंकि वजन के कारण सारा भार घुटनों पर ही आता है।
- जिन लोगों की हड्डियां ज्यादा कमज़ोर होती हैं,डॉक्टर उन्हें भी घुटने के ट्रांसप्लांट के लिए मना करते हैं।
- जिन लोगों को डिमेंशिया, अल्जाइमर या किसी भी तरह का दिमागी रोग हो और वो पोस्ट सर्जरी अपनी देखभाल या सावधानियां डॉक्टर के अनुसार ना बरत सकें, उन्हें इस सर्जरी से बचना चाहिए।
क्या नी ट्रांसप्लांट घुटनों के दर्द से पूरी तरह निजात दिला सकता है?
इसमें कोई शक नहीं कि नी ट्रांसप्लांट (knee replacement) घुटने के तेज़ दर्द और काम करने में मुश्किलों से राहत देने में मदद कर सकता है, खासकर जब दर्द और सूजन दूसरे इलाजों से ठीक न हो रही हों। हालांकि भले ही घुटने का प्रत्यारोपण दर्द खत्म करता हो लेकिन कई बार ये पुरानी बीमारियाँ या जीन से मिलीं हड्डियों की दिक्कतें दूर नहीं कर पाता। इस सर्जरी की सफलता की रेट तो 90 प्रतिशत से ऊपर है लेकिन इससे आपका दर्द पूरी तरह जाएगा या नहीं ये आपकी स्थिति और आपके डॉक्टर पर निर्भर करता है।
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नाभि साफ करने का सही तरीका – nabhi saaf karne ka sahi tarika
यदि नाभि का ध्यान न रखा जाए, तो यह संक्रमण और खुजली का कारण बन सकता है। इसके अलावा समस्या बढ़ जाने पर गंभीर संक्रमण आपको परेशान कर सकते हैं।
बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्हें अपने नाभि की सफाई का ध्यान नहीं रहता। नाभि शरीर का ऐसा हिस्सा है, जिसे हम सभी को नियमित रूप से साफ करते रहना चाहिए। यहां पर आसानी से गंदगी और बैक्टीरिया जमा हो सकते हैं। यदि इसका ध्यान न रखा जाए, तो यह संक्रमण और खुजली का कारण बन सकता है। इसके अलावा समस्या बढ़ जाने पर गंभीर संक्रमण आपको परेशान कर सकते हैं। यदि आप अभी तक नाभि की नियमित सफाई के महत्व से वाकिफ नहीं हैं, तो आपको इसके बारे में मालूम होना चाहिए। ताकि आप इसकी नियमित सफाई कर सकें (Navel care)।
डॉ. विजय सिंघल, सीनियर कंसल्टेंट, डर्मेटोलॉजिस्ट, श्रीबालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट, दिल्ली ने नाभि की सफाई के फायदे और इसके कुछ प्रभावी तरीके भी शेयर किए हैं। तो चलिए जानते हैं इस बारे में अधिक विस्तार से (Navel care)।
जानें नाभि की सफाई न करने से क्या हो सकता है
1. यीस्ट इन्फेक्शन
नाभि बैक्टीरिया के लिए प्रजनन स्थल होती है, क्योंकि नाभि एक अंधेरा, नम क्षेत्र होता है, जहां त्वचा चिपकी रहती है। नतीजतन, आपको अपने नाभि में यीस्ट संक्रमण हो सकता है।
2. असामान्य गंध
भले ही आपको यीस्ट संक्रमण न हो, लेकिन पसीने, गंदगी, डेड स्किन सेल्स और लिंट के जमा होने से आपके नाभि से बदबू आ सकती है।
संक्रमित नाभि के लक्षण क्या हैं
नाभि के संक्रमण या एलर्जी के सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:
नाभि के आस-पास लाल, खुजलीदार त्वचा
दुर्गंध
सूजन
नाभि से पीला, हरा या गहरे रंग का डिस्चार्ज
लगातार दर्द, खास तौर पर नाभि के छेद के आस-पास
नाभि के आस-पास छाले होना
जानें क्या है नाभि साफ करने का सही तरीका (Navel care)
नाभि की सफाई करने के लिए आप गुनगुने पानी और माइल्ड साबुन का इस्तेमाल कर सकती हैं। नाभि की सफाई के बाद इसे अच्छी तरह सूखा लें, क्योंकि नमी के कारण संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
इसके बाद नारियल तेल या जैतून के तेल से नाभि को हल्का मसाज दे सकती हैं। ये न केवल सफाई में मदद करता है, बल्कि नाभि को हाइड्रेटेड भी रखता है।
इसके अलावा, जिन लोगों को डायबिटीज या त्वचा से जुड़ी कोई समस्या है, उन्हें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। नाभि में कभी भी केमिकल युक्त उत्पाद न लगाएं, जैसे परफ्यूम या हार्श केमिकल्स, क्योंकि ये त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
बाहर की ओर निकले हुए बेलीबटन को कैसे करना है साफ़
एक वॉशक्लॉथ पर झाग बनाएं और अपने बेलीबटन को धीरे से रगड़ें। फिर साबुन को साफ कर लें।
शॉवर के बाद, अपने बेलीबटन को अच्छी तरह से ड्राई करें।
फिर अपने बेलीबटन पर थोड़ा लोशन अप्लाई करें।
पियर्सिंग की हुई नाभि को साफ करने का तरीका
यदि आपने हाल ही में अपनी नाभि में पियर्सिंग करवाई है, तो संक्रमण से बचने के लिए उचित सफाई की आवश्यकता होती है, जिसमें पियर्सर द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करना बेहद महत्वपूर्ण है।
यदि आपकी नाभि की पियर्सिंग पूरी तरह से हिल हो गई है, फिर भी इसकी साफ सफाई के प्रति लापरवाही न बरते अन्यथा यह संक्रमित हो सकती है।
एक कॉटन बॉल को पानी में भिगोकर अपने नबी को अच्छी तरह से क्लीन करें। इसके बाद इन्हें ड्राई होने दें, फिर इसमें कोकोनट ऑयल लगाएं। इस प्रकार आपकी नाभि साफ रहती है, साथ ही कोकोनट ऑयल के एंटी बैक्टीरियल गुण इन्हें संक्रमित होने से बचते हैं।
नोट: नाभि में किसी भी तरह का संक्रमण या असामान्यता महसूस होने पर फौरन डॉक्टर से सलाह लें। नाभि की सफाई करना और ध्यान रखना हाइजीन का हिस्सा होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी बेहद जरूरी है।
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