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ठंड में सिर दर्द को कैसे दूर करें – thand me sir dard ko kaise dur kre
बहुत से लोग ठंड के प्रति संवेदनशील होते हैं, और उनमें इसके साइड इफेक्ट के तौर पर सिर दर्द ट्रिगर हो जाता है। तो चिंता न करें, आज हम आपको बताएंगे ठंड के कारण होने वाले सिर दर्द से डील करने के कुछ प्रभावी उपाय (winter headache)।
ठंड के मौसम में लंबे समय तक ठंडी हवाओं के बीच रहने से या फेस पर सीधी ठंडी हवा पड़ने के कारण सर दर्द होना शुरू हो जाता है। बहुत से लोग ठंड के प्रति संवेदनशील होते हैं, और उनमें इसके साइड इफेक्ट के तौर पर सिर दर्द ट्रिगर हो जाता है। क्या आपके साथ भी ऐसा होता है? क्या आप इसकी वजह से लंबे समय तक परेशान रहती हैं?
तो चिंता न करें, आज हम आपको बताएंगे ठंड के कारण होने वाले सिर दर्द से डील करने के कुछ प्रभावी उपाय (winter headache)। इन टिप्स की मदद से आपको ठंड में ट्रिगर हुए सिर दर्द को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। तो चलिए जानते हैं, इस बारे में अधिक विस्तार से।
जानें ठंड के कारण सिर दर्द ट्रिगर को कम करने के उपाय (winter headache)
1. अप्लाई करें वार्म कंप्रेस
सिरदर्द और साइनस के दबाव को कम करने का एक बढ़िया तरीका है अपने माथे और नाक पर वार्म कंप्रेस अप्लाई करना। अगर आपके पास कंप्रेस नहीं है, तो एक वॉशक्लॉथ को गर्म पानी से गीला करके अपने चेहरे की सिकाई करें। वहीं आप चाहें तो कपड़े को आयरन या तबे पर गर्म करके अपने सिर की सिकाई कर सकती हैं। इससे नाक के जमाव से राहत मिलेगी और आपको सिर दर्द और सर्दी के लक्षणों से राहत मिलेगी।
2. साइनस को साफ करें
नमक के पानी से अपने साइनस को साफ करने से बलगम और अन्य जलन पैदा करने वाले तत्व (जैसे धूल और बैक्टीरिया) साफ हो जाते हैं और श्लेष्म झिल्ली की सूजन कम होती है, जिससे बेहतर जल निकासी होती है। यह नेटी पॉट, सिरिंज या दवा की दुकानों में मिलने वाले कई अन्य उत्पादों से किया जा सकता है।
गर्म पानी से नेज़ल रिंस करें, और प्रत्येक उपयोग के बाद डिवाइस को अच्छी तरह से धोकर सुखा लें। इस प्रकार आपको ठंड से होने वाले सिर दर्द ट्रिगर को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी (winter headache)।
3. नेज़ल स्प्रे आजमाएं
अगर नेज़ल वॉश आपके लिए नहीं है, तो नेज़ल सलाइन स्प्रे का उपयोग करके देखें। नेज़ल वॉश की तरह, यह आपके साइनस में नमी जोड़ने और जलन पैदा करने वाले तत्वों और संक्रामक एजेंटों को बाहर निकालने में मदद कर सकता है। यह आपको आसानी से बाजार में उपलब्ध मिल जाएगा, जो सिर दर्द ट्रिगर से फौरन राहत पाने में आपकी मदद करेगा।
4. पर्याप्त फ्लूइड लें
जब आपको सर्दी हो रहा होता है तो उस दौरान गर्म खाद्य पदार्थ और ड्रिंक का सेवन आपको बेहतर महसूस करने में मदद करता है। फ्लूइड इनटेक बढ़ाएं, जिससे आपके बलगम को पतला करने और नाक से पानी निकलने में मदद मिल सकती है। पानी, हर्बल ड्रिंक और गर्म दूध पीने की कोशिश करें। यह सभी सिर दर्द ट्रिगर को नियंत्रित करने में मदद करेंगे।
5. स्टीम लें
स्टीम यानी की भाप लेने से आपका वायुमार्ग नम रहता है, जो बलगम को पतला करता है और आपके लिए सांस लेना आसान हो जाता है। सिर दर्द हो रहा है तो गर्म पानी से नहा सकती हैं, कटोरे में पानी लेकर भाप ले सकती हैं। फिर भाप के पानी से अपने चेहरे पर गर्म सेंक लगाएं, यह आरामदेह हो सकता है और कंजेशन को कम करने में मदद कर सकता है।
6. गर्म टोपी पहनें
यदि आप ठंड के प्रति संवेदनशील हैं, तो कहीं भी ठंडी हवा में जाने से पहले अपने सिर को अच्छी तरह से ढक लें, विशेष रूप से कान और फोरहेड को ढकना जरूरी है। ऐसा करने से ठंडी हवाएं सीधे आपके सिर पर नहीं लगती हैं और सिर दर्द ट्रिगर होने का खतरा कम हो जाता है।
वहीं यदि दर्द हो रहा है, तो अन्य उपायों को शुरू करने से पहले अपने सिर को गर्म टोपी या अन्य मफलर से अच्छी तरह ढक लें, ताकि अतिरिक्त ठंड न लगे। जैसे-जैसे सिर गर्म होता है, वैसे-वैसे आपको दर्द से राहत मिलेगी।
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Soya Chaap : एक आहार विशेषज्ञ से जानते हैं वेजिटेरियन्स के लिए सोया चाप हेल्दी है या नहीं
सोया में पाए जाने वाले मिनरल्स की वजह से लोग सोया चाप (Soya Chaap) को भी हेल्दी बताते हैं। लेकिन इसके फायदे के साथ इसके कुछ नुकसान भी हैं।
सोयाबीन का नाम आपने जब भी सुना होगा, यह सुना होगा कि वे न्यूट्रीएंट्स (Nutrients) का भंडार हैं, उनमें मिनरल्स अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। प्रोटीन, विटामिन, जिंक, कैल्शियम और न जाने क्या क्या। यह सही भी है, सोया हमारे स्वस्थ रहने के लिए एक जरूरी खाद्य पदार्थ है। लेकिन इससे बनता है एक और प्रोडक्ट, जिसे सोया चाप कहते हैं। लोग अक्सर सोया में पाए जाने वाले मिनरल्स की बातें कर के इसे खाना हेल्दी बताते हैं। अपने इन्हीं गुणों की वजह से सोयाबिन हृदय संबंधित बीमारियों के लिए भी फायदेमंद बताया जाता है। लेकिन बात इतनी भर नहीं है, इसके फायदे के साथ इसके कुछ नुकसान (soya chaap ke fayde aur nuksan) भी हैं। खासकर सोया चाप के, तो चलिए शुरू करते हैं।
क्या है सोया चाप (What is Soya Chaap)
सोयाचाप एक शाकाहारी डिश है जो अमूमन सोया प्रोटीन से बनती है। मांस-मछली से दूर रहने वाले अर्थात शाकाहारियों के लिए यह एक अच्छा ऑप्शन है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स या फिर फाइबर-कैल्शियम सब अच्छी मात्रा में होते हैं। स्वाद के मामले में भी ये अव्वल है। इसलिए अगर आप वेज हैं, तो यह आपके लिए सुपरफूड हो सकता है।
सोया चाप खाने के फायदे (Benefits of Soya chaap)
1. प्रोटीन का स्रोत (Source for Protein)
सोयाबिन में प्रोटीन अच्छी मात्रा में होता है ये मेडिकली वेरीफाइड है। कई बार प्रोटीन की कमी से जूझते लोगों को डॉक्टर्स सोया से जुड़ी डिश खाने की सलाह भी देते हैं। दरअसल, प्रोटीन हमारे शरीर की मरम्मत का जिम्मा सम्हालता है। मांसपेशियों के विकास और चोटिल मांसपेशियों को ठीक करने की जिम्मेदारी प्रोटीन की ही होती है। ऐसे में मांसपेशियों से जुड़ी समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए सोया चाप एक अच्छा ऑप्शन है। शरीर को प्रोटीन मिलना Soya Chaap Ke Fayde में से एक है।
2. स्वस्थ हृदय के लिए (Soya for Healthy Heart)
यह हम सबको पता है कि जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ता है तो दिल की बीमारियों से जुड़े खतरे भी बढ़ जाते हैं। सोया चाप ऐसे वक्त में आपकी मदद कर सकता है। दरअसल सोया से जुड़े प्रोडक्ट्स शरीर में कोलेस्ट्रॉल कम करते हैं जिससे दिल की बीमारियों से जुड़े खतरे भी कम हो जाते हैं।
3. वजन कंट्रोल करने में मददगार (Soya for Weight Control)
फैट यानी वसा ऐसी चीज है जो शरीर के लिए जरूरी भी है लेकिन इसके बढ़ने से वजन बढ़ने का खतरा भी मंडराने लगता है। सोया से मिलने वाला प्रोटीन इसे कंट्रोल करने में आपकी मदद कर सकता है। सोया प्रोटीन शरीर से अतिरिक्त फैट को हटाता है, जिससे वजन बढ़ने का खतरा अपने आप कम होने लगता है। इसके साथ ही मांसपेशियों को मजबूत करने वाला सोया प्रोटीन का गुण भी वजन कंट्रोल में रखने के लिए सहायक है क्योंकि अगर आपकी मांसपेशियाँ मजबूत रहती हैं तो वजन बढ़ने का खतरा कम हो जाता है।
4. हड्डियां होंगी मजबूत (Soya for Healthy Bones)
हमारे शरीर की हड्डियों के लिए कैल्शियम कितना जरूरी है, यह बताने की भी बात नहीं। नॉर्मल हड्डी की चोट में भी डॉक्टर्स कैल्शियम की गोली खाने को दे ही देते हैं। सोया इस मामले में प्राकृतिक तौर पर अमीर है क्योंकि सोया प्रोडक्ट्स में कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में मिलता है, इसी की वजह से सोया से बने डिश खाने में हड्डियों को अतिरिक्त ऊर्जा और पोषण मिलते हैं।
कैसे खाएं सोया चाप? (How to eat Soya Chaap)
- सोया चाप को खाने से पहले ये सुझाव दिमाग़ में बिठा लें कि इसे बहुत ज्यादा मात्रा में नहीं लेना है। अगर आप इसे खाने के तौर पर नहीं ले रहे हैं तो दिन भर में एक या दो बार सोयाचाप खाना पर्याप्त है, अगर आप इसे ज्यादा खाएंगे तो पेट की समस्याओं के शिकार होंगे।
- इसके अलावा यह भी कोशिश करनी है कि सोया चाप तला हुआ ना हो, गिल करके या बेक करके खाने में सोया चाप के मिनरल्स बचे रह जाते हैं और ये आपको फायदे के अलावा नुकसान नहीं पहुंचाते।
- अगर आप पहले से पेट की समस्याओं से जूझ रहे हैं तो इस बात का ख्याल रखें कि थोड़ा-थोड़ा सोया चाप खाने से शुरुआत करें और पानी ज्यादा पियें।
- एक अंतिम लेकिन जरूरी बात, कम प्रोसेस्ड सोया चाप ही खाने के इस्तेमाल में लाएं। कंपनियां इन दिनों सोया को ज्यादा प्रोसेस करके मार्केट में उतार रही हैं,जिसके नतीजतन उसमें शुगर,नमक ज्यादा रहता है। यह डायबिटिक या हाई ब्लडप्रेशर वाले लोगों के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
डाइटीशियन चिराग बड़जात्या के अनुसार,
सोया चाप सोयाबीन से बनाया जाता है जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। ये प्रोटीन का एक बेहतरीन स्रोत हो सकता है, लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब सड़क पर बेचने वाले या रेस्टोरेंट्स वाले इसको नरम और फूला हुआ बनाने के लिए इसमें बहुत सारा मैदा मिला देते हैं। सोया चाप में मैदा आपके शरीर में अनावश्यक कैलोरी बढ़ा सकता है जिससे आपको नुकसान पहुंचेगा। कुछ लोग स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें बहुत सारी मेयोनेज़ भी मिलाते हैं, जिससे सोया चाप आपके दिल के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायी हो जाता है क्योंकि मेयोनेज़ में फैट की मात्रा बहुत अधिक होती है। चिराग के अनुसार, अगर आप बाहर सोया चाप खाना पसंद करते हैं तो मेरी सलाह है कि महीने में सिर्फ एक बार ही खाएं। लेकिन अगर आप इसे घर पर बना रहे हैं तो रोजाना इसका लुत्फ उठा सकते हैं।
सोया चाप के नुकसान (Harmful Effects of Soya Chaap)
- सोया में फाइबर की मात्रा ज़्यादा होती है। और जब आप चाप तल कर बनाते हैं तो यह फाइबर हानिकारक बन सकता है। फाइबर की ज़्यादा मात्रा आपके पेट में पाचन (Digestion) सम्बंधी समस्याएं पैदा कर सकता है।
- ये समस्या अक्सर महिलाओं में ज़्यादा होती है। दरअसल, सोया में फाइटोएस्ट्रोजन होता है जिसको ज्यादा मात्रा में खाने से महिलाओं में हार्मोनल इम्बैलेंस (Harmonal Imbalance) जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसी कारण महिलाओं के पीरियड्स वक्त पर नहीं आते। कभी कभी वजन बढ़ जाने का ख़तरा भी होता है।
- कुछ भी नया खाने को ट्राई करने से पहले आपको किससे एलर्जी है, इस बारे में जानना ज़रूरी है। इसी तरह कुछ लोगों को सोया प्रोडक्ट्स से एलर्जी हो सकती है।
- कई बार बाज़ार में मिलने वाले सोया प्रोडक्ट्स ज्यादा प्रोसेस्ड होते हैं,जिसमें आर्टिफिशियल फ्लेवर ऐड होते हैं। यह शरीर के लिए नुकसानदायक है।
- सोया प्रोडक्ट्स को अगर आप ज्यादा मात्रा में खा रहे हैं तो आपको थायरॉइड की प्रॉब्लम्स हो सकती है,जिससे हाइपोथायरॉइड जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
कुल जमा बात यह है कि सोया चाप के नुकसान भी हैं और फायदे भी। लेकिन यह निर्भर आप पर करता है कि आप इसके फायदे लेना चाहते हैं या नुक़सान। यह सब ज़्यादातर निर्भर इस पर करता है कि आप इसे किस मात्रा में ले रहे हैं। खाने-पीने की चीजों में असंतुलन आपको स्वास्थ्य सम्बंधी गम्भीर समस्या दे सकता है। इसलिए सावधानी ज़रूरी है।
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नींद की गोलियों के साइड इफेक्ट्स – Sleeping pills ke health risks
अमेरिकन साइकेट्रिक असोसिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के एक तिहाई वयस्क किसी ना किसी तौर पर नींद आने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। यह सच है कि मेडिकल फील्ड में लगातार दवाओं के आविष्कार ने उनकी राह आसान की है लेकिन क्या यह दवाएं सेफ हैं? तब जब उनमें से कुछ दवाएं लोगों के लिए नशे की तरह बनती जा रही हैं जिनके बगैर उन्हें नींद ही नहीं आती। आज सोने की इन्हीं दवाओं(Sleeping Pills) पर करेंगे बात, कैसे काम करती हैं ये और इनके फायदे क्या और नुकसान क्या हैं?
क्या हैं स्लीपिंग पिल्स (What are Sleeping Pills)
स्लीपिंग पिल्स वह दवाईयां हैं जो नींद की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए बनाई गई हैं। ये दवाईयां नींद लाने में या फिर नींद को बेहतर बनाने के लिए डॉक्टर्स मरीजों को देते हैं जिन्हें इस तरह की समस्याएं होती हैं।।स्लीपिंग पिल्स दरअसल, दिमाग के केमिकल्स पर अपना असर दिखाते हैं,जिनकी वजह से नींद आने में बाधा हो रही होती है। ये पिल्स उन केमिकल्स को कंट्रोल कर उन्हें शांत करते हैं जिसके बाद नींद में कोई बाधा नहीं रह जाती।
क्यों पड़ती है स्लीपिंग पिल्स की ज़रूरत? (When Sleeping peels are needed)
स्लीपिंग पिल्स या नींद की गोलियां उन लोगों के लिए ज़रूरी हो सकती हैं जो सोने में नींद लाने में परेशानी का सना कर रहे हैं। नींद से सम्बंधित कोई भी बीमारी में ये काम आती है, चाहे वो अनिद्रा हो या फिर बार-बार नींद खुल जाने की समस्या। यहां यह बात भी समझनी ज़रूरी है कि डॉक्टर उन्हें ही नींद की गोली खाने की राय देते हैं जिनकी नींद की समस्या ज़्यादा सीरियस हो और जिसका असर उनकी दिनचर्या पर पड़ रहा हो। अगर किसी को नींद कम आ रही या फिर आ ही नहीं रही है तो इसका असर उसके हेल्थ पर पड़ना लगभग तय है। जैसे अगर आपको रात में केवल 3-4 घण्टे ही नींद आती है तो आप की समस्या गम्भीर है। डॉक्टर आपको कुछ समय के लिए ही सही लेकिन नींद की दवाई दे सकता है।
कितने तरह की होती हैं स्लीपिंग पिल्स (Type of Sleeping Pills)
उजाला सिग्नस फाउंडेशन के डायरेक्टर डॉक्टर शुचिन बजाज के अनुसार, स्लीपिंग पिल्स के असर के हिसाब के उन्हें तीन तरह से बांटा जा सकता है। जैसे-
1.बेंजोडायजेपाइन
ये गोलियां तुरन्त असरदार होती हैं और जल्दी नींद लाने के लिए खाई जाती हैं। हाँ लेकिन इनका लंबे समय तक इस्तेमाल आपको इसके साइडइफ़ेक्ट्स ( Sleeping pills side effects) दे सकता है और एक वक्त आएगा जब नींद के लिए पूरी तरह से इसी पर निर्भर हो जाएंगे।
2.नॉन बेंजोडायजेपाइन
ये गोलियां बेंजोडायजेपाइन की तुलना में कम असरदार होती हैं। इन गोलियों के इस्तेमाल स इसपर निर्भरता के कम खतरे हैं और इसके साइडइफेक्ट्स(Sleeping pills side effects) भी कम हैं।
3.हिस्टामाइन-2 रिसेप्टर एंटागोनिस्ट्स
ये गोलियां डायरेक्ट नींद लाने में मदद ना कर नींद को प्रोत्साहित करती हैं। यह पहले दो गोलियों के मुकाबले कम हानिकारक और कम नशे के खतरे के सारे पैरामीटर को पूरा करती हैं।
नींद की गोलियों के नुक़सान (Sleeping Pills Side Effects)
1. नींद पर असर
अगर आप स्लीपिंग पिल्स ले रहे हैं तो मुमकिन है कि आप नॉर्मल नींद ना ले सकें। कभी ये हो सकता है कि आप रात में नींद से उठकर चौंक पड़ते हैं और खूब सोने के बावजूद आपको नींद ना पूरी होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ये इसके साइडइफ़ेक्ट्स (Sleeping pills side effects) में से प्रमुख है।
2. बहुत ज्यादा नींद
जाहिर है स्लीपिंग पिल्स इसीलिए बनी हैं कि खाने वाले को नींद आए। लेकिन बिना डॉक्टरी सलाह के अगर आप नींद की गोली ले रहे हैं तो आपको बहुत ज्यादा नींद लगने की भी शिकायत हो सकती है।
3.दिमागी समस्याओं का जन्म
स्लीपिंग पिल्स का लंबे समय तक इस्तेमाल आपके दिमाग की सेहत के लिए ठीक नहीं है। आपमे चिड़चिड़ापन, गुस्सा जैसी समस्याएं सिर उठा सकती हैं। इसके अलावा,आपको याददाश्त की भी दिक्कतें हो सकती हैं।
3. मानसिक समस्याएं
स्लीपिंग पिल्स के सेवन से रात भर नींद की गहरीता पर असर पड़ सकता है, जिससे व्यक्ति का चौंकने, रात भर जागने, या नींद न पूरी होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
4. लिवर और किडनी को बड़ा डैमेज
बिना डॉक्टरी सलाह के अगर आप रोज की नींद की गोली खाने लगे हैं तो रुक जाइये। इसके परिणाम आपके लिवर और किडनी तक भी जा सकते हैं। रोज़ नींद की गोली आपके किडनी और लिवर को फेल्योर तक भी ले जा सकती है।
डॉक्टर से कब मिलें? (Sleeping pills side effects)
डॉक्टर शुचिन बजाज ने हम से दो चार परिस्थितियों को साझा किया जब नींद की गोली खाने से लोगों को बचना चाहिए क्योंकि डॉक्टर से मिलने का वक्त आ गया उनका। जैसे-
1. जब आपको लग रहा हो कि आप रोज़ स्लीपिंग पिल्स खाने लगे हैं और इसके बगैर आपको नींद नहीं आ रही।
2. स्लीपिंग पिल्स लेने के बाद उल्टी और चक्कर आ रहा हो तो तुरन्त डॉक्टर से मिल लें।
3.स्लीपिंग पिल्स लेने के बाद भी अगर जगे हुए रहते हैं तो यह बड़े खतरे की आहट है। इसका मतलब नींद की गोली का असर आप पर नहीं हो रहा है। ऐसे में लोग डोज़ बढ़ा देते हैं लेकिन ज्यादा अच्छा और सुरक्षित ऑप्शन डॉक्टर से मिल लेना ही है।
4.जिन्हें पहले से ही हार्ट, लिवर या किडनी जैसी कोई समस्या हो वे डॉक्टर से पूछे बगैर स्लीपिंग पिल्स इस ना खाएं।
कुल मिला कर नींद की गोली का ईजाद आसानी बनने के लिए किया गया था ना कि उनका ओवरयूज आपको नुकसान पहुँचा जाए। डॉक्टर की सलाह के बगैर नींद की गोली लेना मतलब अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। इसलिए अपने जीवन का ख्याल रखिये।
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ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण,- Osteoporosis ke lakshan
ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या जोड़ों में टिशूज के ब्रेकडाउन के कारण बढ़ने लगती है। इसके चलते लंबे समय तक जोड़ों में दर्द और सूजन बनी रहती है। ये एक साइलेंट किलर है, जो पोषण की कमी के चलते हड्डियों को कमज़ोर बनाता है।
उम्र बढ़ने के साथ बोन डेंसिटी में परिवर्तन आने लगता है। इसके चलते जोड़ों में दर्द का सामना करना पड़ता है, जो ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या का मुख्य संकेत है। क्रॉनिक ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) के चलते लोगों को चलने- फिरने में तकलीफ और फ्रैक्चर का खतरा बना रहता है। सर्दियों में ये समस्या गंभीर होने लगती है। ठंड के कारण फिजिकल एक्टिविटी का अभाव, धूप की कमी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं इस बीमारी के जोखिम को बढ़ाती हैं। इससे जोड़ों का दर्दबढ़ने लगता है और गिरने का खतरा भी बना रहता है। जानते हैं ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) से राहत पाने के बेहतरीन तरीके।
तेजी से बढ़ रहे हैं ऑस्टियोपोरोसिस के आंकड़े (Osteoporosis cases)
एनसीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार 60 से लेकर 79 वर्ष की आयु के पुरुषों में ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) और ऑस्टियोपेनिया के मामले 10 फीसदी और 36 फीसदी पाए जाते हें। वहीं 40 वर्ष से 79 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं में 18.5 से लेकर 44.7 फीसदी मामले पाए जाते है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis), मस्कुलोस्केलेटल एंड स्किन डिज़ीज़ के अनुसार ये समस्या जोड़ों में टिशूज के ब्रेकडाउन के कारण बढ़ने लगती है। इसके चलते लंबे समय तक जोड़ों में दर्द और सूजन बनी रहती है। ये समस्या घुटनों के अलावा कूल्हों और हाथों के जोड़ों में बढ़ने लगती है। ऑस्टियोआर्थराइटिस को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर की मदद आवश्यक है।
इस बारे में फिज़ियोथेरेपिस्ट डॉ गरिमा भाटिया बताती हें कि ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) एक साइलेंट डिज़ीज़ है। शरीर में बोन मास डेंसिटी के कारण फ्रैक्चर होने का खतरा बना रहता है। प्रोटीन और कैल्शियम की कमी के चलते हड्डिया कमज़ोर और खोखली होने लगती है। इससे शरीर में संतुलन की कमी और स्पाइनल फ्रैक्चर का जोखिम बढ़ने लगता है। जीवनशैली में आने वाले बदलाव इस समस्या को बढ़ा देते हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण (Causes of osteoporosis)
1. पोश्चर में नज़र आता है बदलाव
इस समस्या से ग्रस्त होने पर शरीर आगे की ओर झुका हुआ नज़र आने लगता है। शरीर की लंबाई में भी अंतर नज़र आता है। इस समस्या से ग्रस्त होने पर व्यक्ति का पोश्चर खराब हो जाता है।
2. नाखून कमज़ोर होना
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार नाखून कमज़ोर और धारीदार नज़र आने लगते है। शरीर में कैल्शियम की कमी नाखूनों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है।
3. बोन फ्रैक्चर की संभावना
इसके चलते हड्डिया कमज़ोर हो जाती है, जो फिसलने भरने से टूटने लगती है। बार बार होने वाले फ्रैक्चर ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) का शुरूआती लक्षण है। इससे जोड़ों में दर्द की समस्या भी बढ़ जाती है।
4. पकड़ कमज़ोर होना
न्यूनतम पकड़ भी इस समस्या का मुख्य लक्षण है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार मेनोपॉज के बाद महिलाओं में कमजोर पकड़ और गिरने का खतरा बढ़ जाता है। बोन डेंसिटी का कमज़ोर होना पकड़़ की कमज़ोरी बढ़ाता है।
ऑस्टियोपोरोसिस को नियंत्रित करने के लिए इन तरीकों को अपनाएं (Tips to deal with osteoporosis)
1. नियमित व्यायाम है ज़रूरी
बोन डेंसिटी को बढ़ाने और जोड़ों में होने वाले दर्द को कम करने के लिए एरोबिक्स और योगासन का अभ्यास फायदेमंद साबित होता है। इससे जोड़ों की गतिशीलता को बढ़ाने में भी मदद करता हैए जो समग्र हड्डियों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में योगदान देता है। इससे वेटलॉस में भी मदद मिलती है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ रुमेटोलॉजी के अनुसार स्ट्रेथ एक्सरसाइज़, वॉकिंग, सीढ़ियां चढ़ना और ताई ची का अभ्यास फायदेमंद साबित होता है।
2. आहार में लाएं परिवर्तन
सर्दी के मौसम में धूप की कमी विटामिन डी डेंफिशेंसी का कारण साबित होती है। ऐसे में आहार में प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन डी की मात्रा को बढ़ाएं। इसके लिए आहार में डेयरी प्रोडक्टस, हरी पत्तेदार सब्जियां, फोर्टिफाइड फूड और सीड्स का सेवन करें। इसके अलावा धूप भी फासदेमंद साबित होती है।
3. वॉटर इनटेक बढ़ाएं
ब्लड सेल्स की बेहतरीन फंक्शनिंग के लिए मिनरल्स आवश्यक है। शरीर में वॉटर इनटेक बढ़ाकर मिनरल की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। दरअसल, पानी शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में भी मदद करता है, जो हड्डियों में एकत्रित होने लगते भी हैं। इससे हड्डियों में सूजन और बोन मास में ब्रेकडाउन का सामना करना पड़ता है।
4. मोटापे को करें कम
जोड़ों और हड्डियों में बढ़ने वाले दर्द को कम करने के लिए वज़न को नियंत्रित रखना आवश्यक है। दरअसल, शरीर का बढ़ता वज़न सिस्टम पर दबाव डालता है, जो हड्डियों की कमज़ोरी और दर्द का कारण साबित होता है। ऐसे में शरीर के संतुलित रखकर जोड़ों पर बढ़ने वाले स्ट्रेन को रोका जा सकता है, जिससे शारीरिक अंगों में लचीलापन बढ़ने लगता है।
5. तनाव लेने से बचें
शारीरिक तनाव के अलावा मानसिक तनाव को भी दूर करना आवश्यक है। तनाव के चलते व्यक्ति सिडेंटरी लाइफस्टाइल फॉलो करने लगता है, जिससे दर्द और ऐंठन का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा विंटर ब्लूज भी इसका कारण बनने लगता है। ऐसे में शरीर को रिलैक्स रखें और तनाव लेने से भी बचें।
6. डॉक्टर की सलाह से दवाएं लें
शरीर में बढ़ने वाली दर्द और ऐंठन के प्रबंधन के लिए चेकअप करवाएं। साथ ही डॉक्टरी जांच के बाद बताई गईं एंटी इंफ्लेमरी और पेन रिलीवर दवाएं खाएं। इससे दर्द की समस्या को कम किया जा सकता है। साथ ही सूजन से राहत मिलती है। इसके अलावा जेल और क्रीम का भी इस्तेमाल करें।