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डाॅक्टर बता रहे हैं बच्चों की ग्रोथ के बारे में जरूरी बातें – iss tarah check karen apne bachche ki growth
हर मां को लगता है कि उसका बच्चा कमजोर है, उसकी ग्रोथ ठीक से नहीं हो रही। जबकि कुछ बच्चे बढ़ते तो हैं, पर अंदर से कमजोर रह जाते हैं। यहां हमने एक पीडियाट्रिशियन से जाना बच्चों की ग्राेथ के बारे में सब कुछ।
बच्चों का विकास एक अद्भुत और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। हर बच्चे का विकास (Child growth) उसकी अपनी गति से होता है। परंतु कुछ सामान्य विकासात्मक चरण होते हैं, जो नए माता-पिता को यह समझने में मदद करते हैं कि उनका बच्चा सामान्य रूप से कैसे बढ़ रहा है। इस गाइड में जन्म से 6 साल की उम्र तक के बच्चों के मोटर स्किल्स, फाइन मोटर स्किल्स, भाषा, संज्ञानात्मक (सोचने-समझने की क्षमता), सामाजिक और भावनात्मक कौशल का वर्णन किया गया है। जिनके बारे में जानकर आप अपने बच्चे की ग्रोथ (Child growth) का सही आकलन कर सकती हैं।
जन्म से 3 महीने तक के बच्चे के विकास की गति (Child growth from birth to 3 months)
इस उम्र में शिशु अपने वातावरण के अनुसार सामंजस्य बनाना शुरू करता है और अपनी नई दुनिया में ढलता है।
• मोटर स्किल्स: शिशु अपने हाथ-पैर हिलाता है और तीन महीने तक आते-आते पेट के बल लेटकर सिर उठाने की कोशिश करता है।
• फाइन स्किल्स: इस उम्र में बच्चे मुट्ठी बंद रखते हैं, लेकिन धीरे-धीरे हाथ खोलकर उंगलियों को पकड़ना शुरू करते हैं।
• भाषा: शुरुआत में शिशु रोकर अपनी ज़रूरतें बताता है, लेकिन 2-3 महीने बाद हल्की आवाज़ें निकालना और गू-गू करना शुरू करता है।
• संज्ञानात्मक: शिशु अपने माता-पिता की आवाज़ पहचानता है और चीज़ों का आँखों से पीछा करता है।
• सामाजिक: शिशु माता-पिता के चेहरे को देखकर मुस्कुराना शुरू करता है, जिसे “सोशल स्माइल” कहा जाता है।
• दांत: इस उम्र में दांत नहीं आते, लेकिन कुछ बच्चों में थोड़ी लार बहना शुरू हो सकता है जो दांत निकलने का संकेत हो सकता है।
4 से 6 महीने तक के बच्चे का विकास (Child growth from 4-6 month)
अब बच्चे अपने आसपास की दुनिया के प्रति अधिक सजग होते हैं और नई गतिविधियाँ सीखते हैं।
• मोटर स्किल्स: बच्चे पेट से पीठ पर और पीठ से पेट पर पलटना सीखते हैं और कुछ बच्चे सहारे से बैठने का प्रयास भी करते हैं।
• फाइन स्किल्स: इस उम्र में बच्चे खिलौनों को पकड़ने और एक हाथ से दूसरे हाथ में पास करने की कोशिश करते हैं।
• भाषा: अब बच्चे “बा” , “मा” जैसी आवाज़ें निकालने लगते हैं।
• संज्ञानात्मक: बच्चे चीजों को मुंह में डालकर समझने की कोशिश करते हैं और “कारण और प्रभाव” को समझने लगते हैं।
• सामाजिक: उन्हें “पीक-आ-बू” जैसे खेल पसंद आने लगते हैं।
• दांत: इस समय निचले सामने के दो दांत निकलने लगते हैं।
7 से 9 महीने तक के बच्चे का विकास (Child growth from 7-9 month)
यह अवधि बच्चों के लिए शारीरिक और मानसिक गतिविधियों से भरी होती है।
• मोटर स्किल्स: अधिकतर बच्चे बिना सहारे के बैठ सकते हैं और कुछ रेंगना भी शुरू कर देते हैं।
• फाइन स्किल्स: बच्चे अब अंगूठा और उंगली का उपयोग करके छोटे चीज़ों को उठाने लगते हैं।
• भाषा: इस समय बच्चे अपने नाम पर प्रतिक्रिया देते हैं और आवाज़ों में बदलाव लाते हैं।
• संज्ञानात्मक: “पीक-आ-बू” जैसे खेल से उन्हें यह समझ में आता है कि चीज़ें देखे बिना भी अस्तित्व में होती हैं।
• सामाजिक: बच्चे अपने माता-पिता से लगाव दिखाते हैं और अजनबियों के प्रति झिझक महसूस करते हैं।
• दांत: ऊपरी सामने के दांत भी निकलने लगते हैं।
10 से 12 महीने तक के बच्चे का विकास (Child growth from 10-12 month)
पहले जन्मदिन तक, बच्चे अधिक स्वतंत्रता प्राप्त करने लगते हैं।
• मोटर स्किल्स: बच्चे सहारे से खड़े होना और फर्नीचर पकड़कर चलना शुरू करते हैं।
• फाइन स्किल्स: अब बच्चे खाना पकड़कर खा सकते हैं, ताली बजा सकते हैं और अलविदा करने के लिए हाथ हिला सकते हैं।
• भाषा: पहली बार “मम्मा” और “पापा” जैसे शब्द बोलते हैं।
• संज्ञानात्मक : बच्चे खिलौनों को आकार के अनुसार फिट करना शुरू करते हैं।
• सामाजिक : इस उम्र में बच्चे इशारों की नक़ल करना और परिचित लोगों को पसंद करना शुरू करते हैं।
• दांत : इस अवधि में साइड के दांत भी निकल सकते हैं, जिससे कुल दांतों की संख्या आठ हो सकती है।
12 से 18 महीने तक के बच्चे का विकास (Child growth from 12-18 month)
बच्चों में अब आत्मनिर्भरता की भावना बढ़ने लगती है।
• मोटर स्किल्स: अधिकतर बच्चे चलना शुरू कर देते हैं और कुछ सीढ़ियाँ भी चढ़ने का प्रयास करते हैं।
• फाइन स्किल्स: बच्चे ब्लॉक्स जोड़ सकते हैं और चम्मच का उपयोग करना शुरू करते हैं।
• भाषा: बच्चे 10-15 शब्द बोलना सीखते हैं।
• संज्ञानात्मक: इस समय बच्चे सरल निर्देशों का पालन कर सकते हैं।
• सामाजिक: बच्चे दूसरे बच्चों के साथ खेलने में रुचि दिखाते हैं।
• दांत: इस अवधि में पहले मोलर दांत निकल सकते हैं।
18 से 24 महीने तक के बच्चे का विकास (Child growth form 18-24 month)
अब बच्चे अपने कौशल और आत्मविश्वास को अधिक प्रदर्शित करते हैं।
• मोटर स्किल्स: अब बच्चे दौड़ना, चढ़ना और बॉल को किक करना सीखते हैं।
• फाइन स्किल्स: बच्चे किताब के पन्ने पलट सकते हैं और चम्मच का सही उपयोग कर सकते हैं।
• भाषा: बच्चों का शब्द भंडार तेजी से बढ़ता है और वे दो-शब्द वाक्य बनाने लगते हैं।
• संज्ञानात्मक : कल्पनाशील खेल और समस्या समाधान गतिविधियों में रुचि बढ़ती है।
• सामाजिक : वे समानांतर खेल में रुचि दिखाते हैं।
• दांत : इस उम्र तक कैनाइन दांत निकलते हैं।
2 से 3 साल तक के बच्चे का विकास (Child growth from 2-3 Year)
इस उम्र में बच्चे अधिक आत्मविश्वास और सामाजिक कौशल का प्रदर्शन करते हैं।
• मोटर स्किल्स: बच्चे कूद सकते हैं, दौड़ सकते हैं और कुछ साइकिल भी चला सकते हैं।
• फाइन स्किल्स: अब बच्चे आकृतियाँ बनाना और कैंची का उपयोग करना शुरू करते हैं।
• भाषा: वे 200 से अधिक शब्द समझ सकते हैं और छोटे वाक्य बना सकते हैं।
• संज्ञानात्मक: बच्चे जटिल समस्याओं का समाधान करना शुरू करते हैं।
• सामाजिक: इस समय वे सहयोगात्मक खेल में हिस्सा लेते हैं।
• दांत : इस अवधि में पिछले मोलर दांत निकल आते हैं, जिससे कुल 20 दांत पूरे हो जाते हैं।
3 से 4 साल तक के बच्चे का विकास (Child growth from 3-4 Year)
• मोटर स्किल्स : बच्चे अब एक पैर पर कूद सकते हैं और गेंद फेंकने में अच्छे हो जाते हैं।
• फाइन स्किल्स : ये छोटे-छोटे आकार बना सकते हैं और अक्षर लिखना शुरू करते हैं।
• भाषा : इस समय बच्चों की कहानियाँ सुनाने की क्षमता बढ़ जाती है।
• संज्ञानात्मक : वे गिनती, रंग और आकार को वर्गीकृत करना सीखते हैं।
• सामाजिक-भावनात्मक : बच्चे मित्रता और सहानुभूति दिखाते हैं।
निष्कर्ष
ये विकासात्मक चरण बच्चों के सामान्य विकास के दिशानिर्देश हैं। यदि आपको अपने बच्चे के विकास को लेकर कोई चिंता हो, तो बाल रोग विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें। समय पर सहायता से बच्चे के समग्र विकास में सकारात्मक अंतर आ सकता है।
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नींद की गोलियों के साइड इफेक्ट्स – Sleeping pills ke health risks
अमेरिकन साइकेट्रिक असोसिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के एक तिहाई वयस्क किसी ना किसी तौर पर नींद आने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। यह सच है कि मेडिकल फील्ड में लगातार दवाओं के आविष्कार ने उनकी राह आसान की है लेकिन क्या यह दवाएं सेफ हैं? तब जब उनमें से कुछ दवाएं लोगों के लिए नशे की तरह बनती जा रही हैं जिनके बगैर उन्हें नींद ही नहीं आती। आज सोने की इन्हीं दवाओं(Sleeping Pills) पर करेंगे बात, कैसे काम करती हैं ये और इनके फायदे क्या और नुकसान क्या हैं?
क्या हैं स्लीपिंग पिल्स (What are Sleeping Pills)
स्लीपिंग पिल्स वह दवाईयां हैं जो नींद की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए बनाई गई हैं। ये दवाईयां नींद लाने में या फिर नींद को बेहतर बनाने के लिए डॉक्टर्स मरीजों को देते हैं जिन्हें इस तरह की समस्याएं होती हैं।।स्लीपिंग पिल्स दरअसल, दिमाग के केमिकल्स पर अपना असर दिखाते हैं,जिनकी वजह से नींद आने में बाधा हो रही होती है। ये पिल्स उन केमिकल्स को कंट्रोल कर उन्हें शांत करते हैं जिसके बाद नींद में कोई बाधा नहीं रह जाती।
क्यों पड़ती है स्लीपिंग पिल्स की ज़रूरत? (When Sleeping peels are needed)
स्लीपिंग पिल्स या नींद की गोलियां उन लोगों के लिए ज़रूरी हो सकती हैं जो सोने में नींद लाने में परेशानी का सना कर रहे हैं। नींद से सम्बंधित कोई भी बीमारी में ये काम आती है, चाहे वो अनिद्रा हो या फिर बार-बार नींद खुल जाने की समस्या। यहां यह बात भी समझनी ज़रूरी है कि डॉक्टर उन्हें ही नींद की गोली खाने की राय देते हैं जिनकी नींद की समस्या ज़्यादा सीरियस हो और जिसका असर उनकी दिनचर्या पर पड़ रहा हो। अगर किसी को नींद कम आ रही या फिर आ ही नहीं रही है तो इसका असर उसके हेल्थ पर पड़ना लगभग तय है। जैसे अगर आपको रात में केवल 3-4 घण्टे ही नींद आती है तो आप की समस्या गम्भीर है। डॉक्टर आपको कुछ समय के लिए ही सही लेकिन नींद की दवाई दे सकता है।
कितने तरह की होती हैं स्लीपिंग पिल्स (Type of Sleeping Pills)
उजाला सिग्नस फाउंडेशन के डायरेक्टर डॉक्टर शुचिन बजाज के अनुसार, स्लीपिंग पिल्स के असर के हिसाब के उन्हें तीन तरह से बांटा जा सकता है। जैसे-
1.बेंजोडायजेपाइन
ये गोलियां तुरन्त असरदार होती हैं और जल्दी नींद लाने के लिए खाई जाती हैं। हाँ लेकिन इनका लंबे समय तक इस्तेमाल आपको इसके साइडइफ़ेक्ट्स ( Sleeping pills side effects) दे सकता है और एक वक्त आएगा जब नींद के लिए पूरी तरह से इसी पर निर्भर हो जाएंगे।
2.नॉन बेंजोडायजेपाइन
ये गोलियां बेंजोडायजेपाइन की तुलना में कम असरदार होती हैं। इन गोलियों के इस्तेमाल स इसपर निर्भरता के कम खतरे हैं और इसके साइडइफेक्ट्स(Sleeping pills side effects) भी कम हैं।
3.हिस्टामाइन-2 रिसेप्टर एंटागोनिस्ट्स
ये गोलियां डायरेक्ट नींद लाने में मदद ना कर नींद को प्रोत्साहित करती हैं। यह पहले दो गोलियों के मुकाबले कम हानिकारक और कम नशे के खतरे के सारे पैरामीटर को पूरा करती हैं।
नींद की गोलियों के नुक़सान (Sleeping Pills Side Effects)
1. नींद पर असर
अगर आप स्लीपिंग पिल्स ले रहे हैं तो मुमकिन है कि आप नॉर्मल नींद ना ले सकें। कभी ये हो सकता है कि आप रात में नींद से उठकर चौंक पड़ते हैं और खूब सोने के बावजूद आपको नींद ना पूरी होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ये इसके साइडइफ़ेक्ट्स (Sleeping pills side effects) में से प्रमुख है।
2. बहुत ज्यादा नींद
जाहिर है स्लीपिंग पिल्स इसीलिए बनी हैं कि खाने वाले को नींद आए। लेकिन बिना डॉक्टरी सलाह के अगर आप नींद की गोली ले रहे हैं तो आपको बहुत ज्यादा नींद लगने की भी शिकायत हो सकती है।
3.दिमागी समस्याओं का जन्म
स्लीपिंग पिल्स का लंबे समय तक इस्तेमाल आपके दिमाग की सेहत के लिए ठीक नहीं है। आपमे चिड़चिड़ापन, गुस्सा जैसी समस्याएं सिर उठा सकती हैं। इसके अलावा,आपको याददाश्त की भी दिक्कतें हो सकती हैं।
3. मानसिक समस्याएं
स्लीपिंग पिल्स के सेवन से रात भर नींद की गहरीता पर असर पड़ सकता है, जिससे व्यक्ति का चौंकने, रात भर जागने, या नींद न पूरी होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
4. लिवर और किडनी को बड़ा डैमेज
बिना डॉक्टरी सलाह के अगर आप रोज की नींद की गोली खाने लगे हैं तो रुक जाइये। इसके परिणाम आपके लिवर और किडनी तक भी जा सकते हैं। रोज़ नींद की गोली आपके किडनी और लिवर को फेल्योर तक भी ले जा सकती है।
डॉक्टर से कब मिलें? (Sleeping pills side effects)
डॉक्टर शुचिन बजाज ने हम से दो चार परिस्थितियों को साझा किया जब नींद की गोली खाने से लोगों को बचना चाहिए क्योंकि डॉक्टर से मिलने का वक्त आ गया उनका। जैसे-
1. जब आपको लग रहा हो कि आप रोज़ स्लीपिंग पिल्स खाने लगे हैं और इसके बगैर आपको नींद नहीं आ रही।
2. स्लीपिंग पिल्स लेने के बाद उल्टी और चक्कर आ रहा हो तो तुरन्त डॉक्टर से मिल लें।
3.स्लीपिंग पिल्स लेने के बाद भी अगर जगे हुए रहते हैं तो यह बड़े खतरे की आहट है। इसका मतलब नींद की गोली का असर आप पर नहीं हो रहा है। ऐसे में लोग डोज़ बढ़ा देते हैं लेकिन ज्यादा अच्छा और सुरक्षित ऑप्शन डॉक्टर से मिल लेना ही है।
4.जिन्हें पहले से ही हार्ट, लिवर या किडनी जैसी कोई समस्या हो वे डॉक्टर से पूछे बगैर स्लीपिंग पिल्स इस ना खाएं।
कुल मिला कर नींद की गोली का ईजाद आसानी बनने के लिए किया गया था ना कि उनका ओवरयूज आपको नुकसान पहुँचा जाए। डॉक्टर की सलाह के बगैर नींद की गोली लेना मतलब अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। इसलिए अपने जीवन का ख्याल रखिये।
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ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण,- Osteoporosis ke lakshan
ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या जोड़ों में टिशूज के ब्रेकडाउन के कारण बढ़ने लगती है। इसके चलते लंबे समय तक जोड़ों में दर्द और सूजन बनी रहती है। ये एक साइलेंट किलर है, जो पोषण की कमी के चलते हड्डियों को कमज़ोर बनाता है।
उम्र बढ़ने के साथ बोन डेंसिटी में परिवर्तन आने लगता है। इसके चलते जोड़ों में दर्द का सामना करना पड़ता है, जो ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या का मुख्य संकेत है। क्रॉनिक ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) के चलते लोगों को चलने- फिरने में तकलीफ और फ्रैक्चर का खतरा बना रहता है। सर्दियों में ये समस्या गंभीर होने लगती है। ठंड के कारण फिजिकल एक्टिविटी का अभाव, धूप की कमी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं इस बीमारी के जोखिम को बढ़ाती हैं। इससे जोड़ों का दर्दबढ़ने लगता है और गिरने का खतरा भी बना रहता है। जानते हैं ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) से राहत पाने के बेहतरीन तरीके।
तेजी से बढ़ रहे हैं ऑस्टियोपोरोसिस के आंकड़े (Osteoporosis cases)
एनसीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार 60 से लेकर 79 वर्ष की आयु के पुरुषों में ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) और ऑस्टियोपेनिया के मामले 10 फीसदी और 36 फीसदी पाए जाते हें। वहीं 40 वर्ष से 79 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं में 18.5 से लेकर 44.7 फीसदी मामले पाए जाते है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis), मस्कुलोस्केलेटल एंड स्किन डिज़ीज़ के अनुसार ये समस्या जोड़ों में टिशूज के ब्रेकडाउन के कारण बढ़ने लगती है। इसके चलते लंबे समय तक जोड़ों में दर्द और सूजन बनी रहती है। ये समस्या घुटनों के अलावा कूल्हों और हाथों के जोड़ों में बढ़ने लगती है। ऑस्टियोआर्थराइटिस को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर की मदद आवश्यक है।
इस बारे में फिज़ियोथेरेपिस्ट डॉ गरिमा भाटिया बताती हें कि ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) एक साइलेंट डिज़ीज़ है। शरीर में बोन मास डेंसिटी के कारण फ्रैक्चर होने का खतरा बना रहता है। प्रोटीन और कैल्शियम की कमी के चलते हड्डिया कमज़ोर और खोखली होने लगती है। इससे शरीर में संतुलन की कमी और स्पाइनल फ्रैक्चर का जोखिम बढ़ने लगता है। जीवनशैली में आने वाले बदलाव इस समस्या को बढ़ा देते हैं।
ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण (Causes of osteoporosis)
1. पोश्चर में नज़र आता है बदलाव
इस समस्या से ग्रस्त होने पर शरीर आगे की ओर झुका हुआ नज़र आने लगता है। शरीर की लंबाई में भी अंतर नज़र आता है। इस समस्या से ग्रस्त होने पर व्यक्ति का पोश्चर खराब हो जाता है।
2. नाखून कमज़ोर होना
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार नाखून कमज़ोर और धारीदार नज़र आने लगते है। शरीर में कैल्शियम की कमी नाखूनों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है।
3. बोन फ्रैक्चर की संभावना
इसके चलते हड्डिया कमज़ोर हो जाती है, जो फिसलने भरने से टूटने लगती है। बार बार होने वाले फ्रैक्चर ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) का शुरूआती लक्षण है। इससे जोड़ों में दर्द की समस्या भी बढ़ जाती है।
4. पकड़ कमज़ोर होना
न्यूनतम पकड़ भी इस समस्या का मुख्य लक्षण है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार मेनोपॉज के बाद महिलाओं में कमजोर पकड़ और गिरने का खतरा बढ़ जाता है। बोन डेंसिटी का कमज़ोर होना पकड़़ की कमज़ोरी बढ़ाता है।
ऑस्टियोपोरोसिस को नियंत्रित करने के लिए इन तरीकों को अपनाएं (Tips to deal with osteoporosis)
1. नियमित व्यायाम है ज़रूरी
बोन डेंसिटी को बढ़ाने और जोड़ों में होने वाले दर्द को कम करने के लिए एरोबिक्स और योगासन का अभ्यास फायदेमंद साबित होता है। इससे जोड़ों की गतिशीलता को बढ़ाने में भी मदद करता हैए जो समग्र हड्डियों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में योगदान देता है। इससे वेटलॉस में भी मदद मिलती है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ रुमेटोलॉजी के अनुसार स्ट्रेथ एक्सरसाइज़, वॉकिंग, सीढ़ियां चढ़ना और ताई ची का अभ्यास फायदेमंद साबित होता है।
2. आहार में लाएं परिवर्तन
सर्दी के मौसम में धूप की कमी विटामिन डी डेंफिशेंसी का कारण साबित होती है। ऐसे में आहार में प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन डी की मात्रा को बढ़ाएं। इसके लिए आहार में डेयरी प्रोडक्टस, हरी पत्तेदार सब्जियां, फोर्टिफाइड फूड और सीड्स का सेवन करें। इसके अलावा धूप भी फासदेमंद साबित होती है।
3. वॉटर इनटेक बढ़ाएं
ब्लड सेल्स की बेहतरीन फंक्शनिंग के लिए मिनरल्स आवश्यक है। शरीर में वॉटर इनटेक बढ़ाकर मिनरल की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है। दरअसल, पानी शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में भी मदद करता है, जो हड्डियों में एकत्रित होने लगते भी हैं। इससे हड्डियों में सूजन और बोन मास में ब्रेकडाउन का सामना करना पड़ता है।
4. मोटापे को करें कम
जोड़ों और हड्डियों में बढ़ने वाले दर्द को कम करने के लिए वज़न को नियंत्रित रखना आवश्यक है। दरअसल, शरीर का बढ़ता वज़न सिस्टम पर दबाव डालता है, जो हड्डियों की कमज़ोरी और दर्द का कारण साबित होता है। ऐसे में शरीर के संतुलित रखकर जोड़ों पर बढ़ने वाले स्ट्रेन को रोका जा सकता है, जिससे शारीरिक अंगों में लचीलापन बढ़ने लगता है।
5. तनाव लेने से बचें
शारीरिक तनाव के अलावा मानसिक तनाव को भी दूर करना आवश्यक है। तनाव के चलते व्यक्ति सिडेंटरी लाइफस्टाइल फॉलो करने लगता है, जिससे दर्द और ऐंठन का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा विंटर ब्लूज भी इसका कारण बनने लगता है। ऐसे में शरीर को रिलैक्स रखें और तनाव लेने से भी बचें।
6. डॉक्टर की सलाह से दवाएं लें
शरीर में बढ़ने वाली दर्द और ऐंठन के प्रबंधन के लिए चेकअप करवाएं। साथ ही डॉक्टरी जांच के बाद बताई गईं एंटी इंफ्लेमरी और पेन रिलीवर दवाएं खाएं। इससे दर्द की समस्या को कम किया जा सकता है। साथ ही सूजन से राहत मिलती है। इसके अलावा जेल और क्रीम का भी इस्तेमाल करें।
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डायबिटीज है तो अपने दिल का इस तरह रखें ख्याल – Diabetes me heart attack ke reason aur bachav ke upay
अगर आपको डायबिटीज है तो आपको अपने दिल की सेहत का ख्याल रखना चाहिए क्योंकि डायबिटीज सबसे ज्यादा आपके दिल ही पर ख़तरे बढ़ाता है। हार्ट अटैक समेत बाकी हेल्थ प्रॉब्लम्स के सबसे ज्यादा खतरे उन्हीं को हैं जो डायबिटीज की समस्या से जूझ रहे हैं।
‘इसका उससे क्या लेना-देना है’। यह वाक्य हम अक्सर अपनी दिनचर्या में कई बार बोलते होंगे। कई बार ऐसी सिचुएशन आ भी जाती है। दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य, हमारा शरीर ऐसा अपने बाकी पार्ट्स के बारे में नहीं कह सकता। यानी अगर शरीर का कोई एक अंग प्रभावित है तो उसका असर दूसरे पर पड़ना तय है। इसी तरह है डायबिटीज और हार्ट हेल्थ का कनेक्शन। अगर आपको डायबिटीज है तो आपको अपने दिल की सेहत का ख्याल रखना चाहिए क्योंकि डायबिटीज सबसे ज्यादा आपके दिल ही पर ख़तरे बढ़ाता है। कैसे? आज समझते हैं।
हार्ट प्रॉब्लम और डायबिटीज का कनेक्शन (Connection Between Heart Attack and Diabetes)
एक स्टडी कहती है कि अगर आपको डायबिटीज है तो इसके दोगुने चांसेस हैं कि आपको दिल से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। दरअसल, डायबिटीज हमारे शरीर मे कोलेस्ट्रॉल के लेवल को बढ़ा देता है जिससे हमारे शरीर में खून के प्रवाह में दिक्कतें होने लगती है। अब अगर रक्त प्रवाह में दिक्कत होगी तो हार्ट तक ऑक्सीजन कम पहुंचेगा, जिस वजह से हार्ट अटैक या हार्ट से जुड़ी बीमारियां डायबिटीज में कॉमन हो जाती हैं।डॉक्टर विवेक चन्द्र श्रीवास्तव के अनुसार, डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में कई ऐसी दिक्कतें होती हैं जो हार्ट की दिक्कतें बढ़ाती हैं। एक एक कर के सारे कारण समझते हैं।
1.ब्लड शुगर (Blood Sugar)
डायबिटीज में ब्लड शुगर हाई हो जाता है जो लंबे समय तक बना रहता है। इसकी वजह से धमनियों(Arteries की दीवारें मोटी और कड़ी हो जाती हैं, जिसकी वजह से शरीर में खून बहने में परेशानी होने लगती है। खून के प्रवाह में दिक्कत की वजह से हमारे दिल तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंचती। यही हार्ट अटैक का कारण बनता है।
2.हाई ब्लडप्रेशर (High Blood Pressure)
डायबिटीज वाले व्यक्तियों में हाई ब्लड प्रेशर का खतरा ज्यादा होता है क्योंकि हाई ब्लडप्रेशर की वजह से दिल को ज्यादा प्रेशर में काम करना पड़ता है जिससे दिल(Heart) की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और डायबिटीज और हार्ट अटैक ( Diabetes and heart attack) का ख़तरा बढ़ जाता है।
3.डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic Neuropathy)
डायबिटीज से शरीर की नसों को भी नुकसान हो सकता है। इस सिचुएशन को डॉक्टर्स डायबेटिक न्यूरोपैथी कहते हैं। इस परिस्थिति में जब दिल की नसों को नुकसान होता है, तो यह हमारे हार्ट के नॉर्मल काम पर भी इसका असर पड़ने लगता है। डायबिटीज के साथ हार्ट अटैक ( Diabetes and heart attack) का खतरा इसकी वजह से भी बढ़ जाता है।
4.सूजन और इन्सुलिन रेजिस्टेंस (Swelling and Insulin Resistance)
डायबिटीज की सूरत में हमारा शरीर अक्सर इन्सुलिन रेसिस्टेंस हो जाता है। जिसकी वजह से शरीर मे सूजन होने लगती है।
यह सूजन जब हमारे नसों पर असर करती है, उस वक्त खून का आवागमन बाधित होने लगता है। खून के आवागमन के बाधित होने का सीधा असर हार्ट पर पड़ता है, यह भी डायबिटीज और हार्ट अटैक ( Diabetes and heart attack) का एक कारण है।
5.कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol)
डायबिटीज से पीड़ित लोगों का कोलेस्ट्रॉल अक्सर ज्यादा होता है। उनके शरीर में ख़राब कोलेस्ट्रॉल बढ़ने लगता है और अच्छा कोलेस्ट्रॉल कम होने लगता है।
खराब कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना अक्सर नसों में खून के थक्के बना लेता है जिससे खून का प्रवाह प्रभावित होने लगता है और हार्ट तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं जा पाती। ये भी डायबिटीज और हार्ट अटैक ( Diabetes and heart attack) के कारणों में से एक है।
1.अगर आपका ब्लड शुगर लंबे समय से बढ़ा हुआ हो।
2.अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है और आप।उसका इलाज ना करा रहे हों।
3.स्मोकिंग और शराब भी डायबिटीज और हार्ट अटैक के कॉमन कारण हैं।
4. अगर आपका वजन ज्यादा है और आप उसे घटाने के लिए कोई जतन नहीं कर रहे हैं।
5. कई बार डायबिटीज और हार्ट प्रॉब्लम जीन में भी मिलती हैं। अगर आपके परिवार में किसी को डायबिटीज या हार्ट प्रॉब्लम रहा हो, तो यह समस्याएं आपको भी हो सकती हैं।
डायबिटीज और हार्ट अटैक से बचने के लिए क्या करें? (What to do to prevent Diabetes and Heart Attack)
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स्वस्थ खाना खाएं (Healthy Food)
मसालेदार खानों को छोड़कर हरी सब्जियों का सहारा लें। फलों को खाने में शामिल करें। जैतून का तेल हो या नारियल का तेल भी खाने में शामिल करें।
अंडा अगर खाएं तो उसकी पीली जर्दी निकाल लें। ध्यान इस बात का भी रखना है कि खाने में नमक और चीनी का इस्तेमाल कम से कम हो। तभी डायबिटीज और हार्ट अटैक ( Diabetes and heart attack) से आप बचे रह पाएंगे।
2. नियमित व्यायाम (Daily Exercise)
दिन भर में कम से कम आधे से एक घण्टे व्यायाम जरूर करें। तेज़ चलना,दौड़ना,साइकिल चलाना- यह सब डायबिटीज और हार्ट के खतरों को कम करने में मदद करता है।
3.धूम्रपान और शराब छोड़ें (Quit Smoking and Alcohol)
हार्ट अटैक और डायबिटीज के मुख्य कारणों में से सिगरेट और शराब भी है। अगर आपको इनसे बचना है तो सिगरेट और शराब से दूरी बनानी पड़ेगी, वरना शरीर में बुरे कोलेस्ट्रॉल बनते रहेंगे और आप इस समस्या से जूझते रहेंगे।
4. कम लें तनाव (Don’t take stress)
तनाव एक बड़ा फैक्टर है जिसकी वजह से लोग डायबिटीज की समस्या से जूझ रहे हैं। तनाव हार्ट की समस्याओं को भी बढ़ाता है। लंबी सांस,योग या मेडिकेशन के सहारे तनाव से निजात पाने की कोशिश करें।
5. वजन कम करें (Reduce Your Weight)
हमने अभी बात की थी कि बढ़ता वजन एक वजह है जिससे दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ता है। कोशिश करें कि वजन कम रहे। वजन कम करने के लिए नियमित व्यायाम,खाने का ध्यान जरुरी है।
डायबिटीज रोगियों के लिए कब गंभीर हो सकती है स्थिति, कब जाना चाहिए डाॅक्टर के पास
1.अगर सीने में दर्द महसूस होता हो या कभी अचानक दर्द महसूस हो।
2. अगर आपके वजन में अचानक कमी आई हो।
3.अगर आपके शरीर के किसी भी हिस्से में सूजन हो रही हो,खासकर हाथों या पैरों में।
4. अगर आपका ब्लड प्रेशर 140/90 mmHg से अधिक है तो आपको तुरन्त डॉक्टर से मिलना चाहिए।
5. लिपिड प्रोफ़ाइल टेस्ट में अगर आपका कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ा आ रहा हो।
अगर आप डायबिटिक हैं तो आपको अपने दिल का ख्याल पूरे दिल से रखने की जरूरत है। डॉक्टर से मिलिए और डॉक्टर जो भी बताए उसके हिसाब से चलिए। एक स्वस्थ दिनचर्या का पालन कीजिये। तभी आप सुरक्षित रहेंगे और आपका दिल सुरक्षित धड़कता रहेगा।
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