व्रत त्यौहार
Bhairav Ashtami 2024: दो दिन मनाई जा रही भैरव अष्टमी, शनि, मंगल और राहु से पीड़ित लोग जरूर करें पूजन
भैरव अष्टमी यानि भैरव जयंती शनिवार को है। श्रीभैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है।
By Jogendra Sen
Publish Date: Fri, 22 Nov 2024 11:06:24 AM (IST)
Updated Date: Fri, 22 Nov 2024 01:04:27 PM (IST)
HighLights
- कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जन्मोत्सव मनाते हैं।
- विद्वानों का मत है कि भैरव की पूजा संध्याकाल में होती है।
- भैरव के अनेक रूप हैं इनमें बटुक भैरव, महाकाल भैरव हैं।
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती (अष्टमी) मनाई जाती है। इस वर्ष काल भैरव जयंती 23 नवंबर शनिवार को मनाई जाएगी। अष्टमी तिथि का प्रारंभ 22 नवंबर को शाम छह बजकर आठ मिनिट बजे होगा और अष्टमी तिथि का समापन 23 नवंबर को रात्रि 10 बजे होगा।
भैरव अष्टमी को लेकर कुछ विद्वानों का मत है कि भैरव की पूजा संध्याकाल में होती है। इसलिए आज भी भैरव अष्टमी मनाई जा सकती है। मंदिरों में इसको लेकर तैयारियां जारी हैं।
नाम के उच्चरण के साथ काल भैरव की पूजा
- ज्योतिषाचार्या पंडित रवि शर्मा ने बताया कि श्रीभैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है।
- वे इस प्रकार हैं- असितांग भैरव, चंड भैरव, रूरू भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव है। इन्हें क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। श्रीभैरव से काल भी भयभीत रहता है, अत: उनका एक रूप “काल भैरव” के नाम से विख्यात है। दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें “आमर्दक” कहा गया है। शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है।
भैरव बाबा के प्राकट्य दिवस पर होगा अभिषेक
मां दुर्गा के अनुचर भैरव बाबा के प्राकट्य दिवस 23 नवंबर शनिवार को भैरव मंदिर, शम्भूमल की बगीची, मुरार में धार्मिक आयोजन श्रद्धा व आस्था के साथ मनाया जाएगा। शम्भूमल की बगीची मुरार स्थित 125 साल पुराने प्राचीन भैरव मंदिर पर सुबह भगवान भैरव के श्रीविग्रह का दुग्ध, दही, मधु, घृत, शर्करा, इत्र, गंगा-जल आदि से वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भक्तों द्वारा महाभिषेक किया जाएगा। बाबा के विग्रह पर गोघृत मिश्रित सिंदूर का लेपनकर चोला धारण कराया जाएगा। भैरव बाबा को छप्पन भोग लगाया जाएगा।
बटुक भैरव की साधना से अशुभ फलदायक हो जाते हैं
- जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीड़ित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारंभ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 40 दिन तक करें। अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
- भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहां शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से तीन बजे का माना जाता है। जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है।
- राहु-केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगाना लाभकारी है, इससे भैरव प्रसन्न होते है।
व्रत त्यौहार
Makar Sankranti 2025: सूर्य के उत्तरायण का पर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी को, सुबह 7 बजकर 59 मिनट पर मकर राशि में होगा प्रवेश
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार, सूर्य की मकर संक्रांति को शुभ माना जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर गमन करने लगते हैं। यह समय सकारात्मकता, धर्म, कर्म तथा मांगलिक कार्यों के लिए विशेष शुभ माना जाता है।
By Arvind Dubey
Publish Date: Tue, 17 Dec 2024 12:56:30 PM (IST)
Updated Date: Tue, 17 Dec 2024 01:02:37 PM (IST)
HighLights
- सूर्य के राशि परिवर्तन को सूर्य की संक्रांति कहा जाता है।
- पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।
- सूर्य के मकर में प्रवेश करते ही खरमास का समापन होगा।
नईदुनिया, उज्जैन। सूर्य के उत्तरायण का पर्व मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाएगा। इस दिन सुबह 7 बजकर 59 मिनट पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा। ज्योतिष के जानकारों के अनुसार, जब सूर्य का प्रवेश दिन में हो या सुबह सूर्योदय के तीन मुहूर्त के आसपास हो, तो मकर संक्रांति का अनुक्रम बनता है।
धर्मशास्त्र की इसी मान्यता के अनुसार, 14 तारीख को मकर संक्रांति मनाई जाएगी। मोक्षदायिनी शिप्रा में पर्व स्नान होगा। ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया, सूर्य के राशि परिवर्तन को सूर्य की संक्रांति कहा जाता है। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
सूर्य की मकर संक्रांति शुभ
- सूर्य सिद्धांत की मान्यता के अनुसार, 14 जनवरी मंगलवार को पुनर्वसु नक्षत्र, विषकुंभ योग एवं बालव करण तथा कर्क राशि के चंद्रमा की साक्षी में सूर्य देवता का धनु राशि को छोड़कर के मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
- मकर राशि में प्रवेश होते ही सूर्य की मकर संक्रांति कहलाएगी। यह समय सुबह 7.59 पर होगा। सूर्य के मकर में प्रवेश करते ही खरमास का समापन होगा तथा उत्तरायण का पक्ष आरंभ हो जाएगा।
- मांगलिक कार्य आरंभ होंगे। मकर संक्रांति का पर्व काल होने से यह स्नान, दान, तर्पण, पितरों के निमित्त श्रद्धा व्यक्त करने का दिवस है। इस दिन अन्नदान, वस्त्रदान करने का विशेष महत्व है।
- तांबा, चांदी अथवा सोने के कलश में काले तिल भरकर के दान करने का महत्व भी बताया गया है। इस दिन जल में काले तिल डालकर स्नान करने से गरीबी दूर होती है तथा रोग, दोष समाप्त होते हैं।
व्यापार में उतार चढ़ाव, भारत लाए जा सकते हैं वन्यप्राणी
शास्त्रीय गणना व सूर्य सिद्धांत में संक्रांति के शुभ अशुभ फल में वाहन का विशेष महत्व होता है। इस बार संक्रांति का वाहन व्याघ्र तथा उप वाहन अश्व रहेगा। व्याघ्र पर सवार होकर आ रही संक्रांति वन्य प्राणियों के लिए विशेष प्रभावी रहेगी। इससे बाघ व कूनों में चीतों की संख्या में वृद्धि होगी। अन्य देशों से नए वन्यप्राणी भारत लाए जा सकते हैं। प्राणियों के जीवन पर कुछ संकट की स्थिति भी बन सकती है।
व्रत त्यौहार
Vivah Muhurat 2025: कल से शुरू हो रहा खरमास, एक महीने तक नहीं होंगे विवाह…. नए साल में जून तक 40 दिन शुभ मुहूर्त
हिंदू धर्म में मलमास या खरमास को बहुत मान्यता है। इस अवधि में किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इस दौरान ईश्वर की भक्ति की जाती है। सूर्य की स्थिति में बदलाव के कारण यह स्थिति बनती है। अभी 15 दिसंबर से मलमास की शुरुआत होगी, जो 14 जनवरी तक रहेगा।
Source link
व्रत त्यौहार
Dattatreya Jayanti 2024: मार्गशीर्ष मास की चतुर्दशी आज… अमृत सिद्धि योग में मनाया जा रहा भगवान दत्तात्रेय का प्राकट्योत्सव
देशभर में आज भगवान् दत्तात्रेय की पूजा की जा रही है। मान्यता है कि इस दिन भगवान का नाम जाप करने से कई तरह की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यह दिन इसलिए भी विशेष है क्योंकि आज अमृत सिद्धि योग और बुधादित्य योग बन रहे हैं।
By Arvind Dubey
Publish Date: Sat, 14 Dec 2024 08:25:53 AM (IST)
Updated Date: Sat, 14 Dec 2024 10:23:18 AM (IST)
HighLights
- मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी आज
- मनाया जा रहा भगवान दत्तात्रेय का प्राकट्योत्सव
- बुधादित्य योग में पूजा का मिलता है विशिष्ट फल
नईदुनिया, उज्जैन। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी पर 14 दिसंबर को अमृत सिद्धि योग में भगवान दत्तात्रेय का प्राकट्योत्सव मनाया जा रहा है। देशभर के प्रमुख मंदिरों में सुबह भगवान दत्तात्रेय का अभिषेक, पूजन व श्रृंगार के उपरांत शाम को गोधूलि बेला में महाआरती होगी।
बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन के दत्त मंदिरों में दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा की स्तुति गुंजायमान होगी। ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया, पंचांग की गणना के अनुसार शनिवार के दिन रोहिणी नक्षत्र की साक्षी में आ रही दत्त जयंती विशिष्ट मानी जा रही है।
इस दिन अमृत सिद्धि योग
- भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अमृत सिद्धि योग को अति महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। व्यावहारिक जीवन में यदि कोई समस्या आ रही है तो उस समस्या का निराकरण करने के लिए अमृत सिद्धि योग का संयोग विशिष्ट साधना उपासना की दृष्टि से श्रेष्ठ माना जाता है।
- इस दौरान रोग दोष की निवृत्ति के लिए भगवान् दत्तात्रेय के विशिष्ट पाठ और मंत्रों का उच्चारण करने से या जाप करने से व्याधियों का निराकरण होता है। बंधन, बाधा समाप्त होती है। विशिष्ट योग के अंतर्गत गुरु मार्ग के माध्यम से दत्त भगवान की साधना करनी चाहिए।
बुधादित्य योग का भी संयोग
पंचांग की गणना के अनुसार, दत्त जयंती पर अमृत सिद्धि योग तो है ही, मूल रूप से सूर्य बुध का वृश्चिक राशि में होकर के बुध आदित्य योग का निर्माण करना भी अपने आप में विशेष है।
महाकाल के समीप प्राचीन दत्त मंदिर
दत्तात्रेय जयंती पर महाकाल मंदिर के हाथी द्वार के समीप स्थित प्राचीन दत्त मंदिर में भगवान का प्राकट्योत्सव मनाया जाएगा। पुजारी संजय दिवटे ने बताया इस स्थान पर ओदुंबर (गुलर) के वृक्ष के नीचे वासुदेव सरस्वतीजी टेमरे स्वामीजी महाराज ने विश्राम किया था।
आज भी इस मंदिर में ओदुंबर का वह वृक्ष तथा स्वामीजी की चरण पादुका मौजूद है। दिवटे ने बताया टेमरे स्वामीजी महाराज भगवान दत्तात्रेय के अवतार माने जाते हैं। दत्त जयंती पर सुबह भगवान का अभिषेक पूजन होगा। शाम को गोधूलि बेला में महाआरती की गई।