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खाना खाने के बाद थकान दूर करने के उपाय,- khana khane ke baad thakan dur krne ke upay

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शरीर में कोलेसिस्टोकाइनिन, ग्लूकागन और एमिलिन जैसे हार्मोन खाना खाने के बाद संतुष्टि की भावना को बढ़ाने में मदद करते हैं। इसके अलावा ब्लड शुगर बढ़ता है और इस शर्करा को रक्त से कोशिकाओं में जाने देने के लिए इंसुलिन का उत्पादन होता है। ऐसे में नींद और थकान की समस्या बढ़ जाती है।

मनपसंद खाना खाने के बाद मन संतुष्ट हो जाता है और शरीर में एक एनर्जी का अनुभव होता है। मगर कुछ ही देर में शरीर में थकान महसूस होने लगती है जिससे वर्क प्रोडक्टीविटी घटती हुई नज़र आती है। दरअसल, पोस्ट मील बार बार नींद की झपकी आने लगती है और शरीर में थकान का अनुभव होता है। थकान दूर करने के लिए अक्सर लोग वॉक करने लगते है, तो कुछ चाय या कॉफी से ब्रेन को एक्टिव करने की कोशिश करने लगते है। जानते हैं न्यूट्रीशनिस्ट से खाना खाने के बाद होने वाली थकान (feeling tired after eating) के कारण।

इस बारे में न्यूट्रीशनिस्ट मनीषा गोयल कहना है कि खाने के बाद आने वाली नींद को पोस्टप्रांडियल सोमनोलेंस कहा जाता है। इसके चलते मील्स के बाद हल्की थकान और ऊर्जा के स्तर में गिरावट महसूस होती है। दरअसल,कोलेसिस्टोकाइनिन, ग्लूकागन और एमिलिन जैसे हार्मोन शरीर में खाना खाने के बाद संतुष्टि की भावना को बढ़ाने में मदद करते हैं। इसके अलावा ब्लड शुगर बढ़ जाती हैए और इस शर्करा को रक्त से कोशिकाओं में जाने देने के लिए इंसुलिन का उत्पादन होता है, जहाँ इसका उपयोग ऊर्जा के लिए किया जाता है। इसके अलावा मील्स के बाद शरीर में सेरोटोनिन और मेलाटोनिन रिलीज़ होता है, जिससे नींद आने की समस्या बढ़ने लगती है।

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उच्च रक्त शर्करा यानि हाइपरग्लाइसेमिया थकान का मुख्य कारण साबित होता है। चित्र- अडोबी स्टॉक

इन कारणों से खाना खाने के बाद बढ़ जाती है थकान

1. हाई ब्लड शुगर

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार उच्च रक्त शर्करा यानि हाइपरग्लाइसेमिया थकान का मुख्य कारण साबित होता है। हाइपरग्लाइसेमिया उस स्थिति को कहते हैं, जब बहुत अधिक चीनी की मात्रा रक्त में मौजूद होती है और कोशिकाओं तक नहीं पहुँच पाती। ऐसे में शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन और उपयोग नहीं कर पाता है। दरअसल, इंसुलिन का काम ग्लूकोज या चीनी को ऊर्जा के लिए कोशिकाओं में पहुँचाने में मदद करना है।

2. नींद की कमी

दिनभर में 8 से 10 घंटे की नींद न मिल पाने के शरीर में तनाव और थकान का स्तर बढ़ने लगता है। ऐसे में कॉर्टिसोल हार्मोन रिलीज़ होता है और हार्मोनल असंतुलन बढ़ने लगता है। इससे शरीर में थकान, नींद और मोटापा बढ़ने की समस्या का सामना करना पड़ता है।

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3. अल्कोहल का सेवन

शराब का सवेन करने से दिनभर बेहोशी का आलम रहता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार अल्कोहल सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है, जिससे ब्रेन एक्टीविटी स्लो होने लगता है। इससे तनाव का सामना करनापड़ता है। साथ ही खाना खानेके बाद थकान का सामना करना पड़ता है।

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अल्कोहल सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है, जिससे ब्रेन एक्टीविटी स्लो होने लगता है।चित्र : अडोबी स्टॉक

4 आप ज्यादा खा रहे हैं

ओवरइटिंग करने से खाना खाने के बाद नींद आने की समस्या का कारण बनने लगता है। वे लोग जो क्षमता से अधिक खाते हैं। उन्हें खाना खाने के बाद नींद आने की समस्या का सामना करना पड़ता है। 2 से 3 बड़ी मील्स की जगह 4 से 5 छोटी मील्स लें।

5 कुछ खास तरह के फूड्स

वे फूड्स जिनमें ट्रिप्टोफैन, मेलाटोनिन, कार्ब्स और फैट्स की उच्च मात्रा पाई जाती है। उन्हें खाने के बाद नींद की समस्या बढ़ जाती है। इसके अलावा शुगरी पेय पदार्थों का सेवन भी इस समस्या का कारण बनने लगता है।

6 आप तनाव में हैं

रोज़मर्रा के जीवन में बढ़ने वाले तनाव से जूझने के कारण खाना खानेके बाद थकान का सामना करना पड़ता है। ऐसे में व्यक्ति हर वक्त परेशान और चिंतित दिखने लगता है। इसका असर वर्क प्रोडक्टीविटी पर भी दिखने लगता है।

7 हॉर्मोन्स में बदलाव

हार्मोनल असंतुलन नींद और थकान का कारण साबित होता है। शरीर में तनाव से संबधित हार्मोन कार्टिसोल का स्तर एंग्ज़ाइटी को बढ़ाता है। इसके चलते अणिकतर लोगों को थकान का सामना करना पड़ता है।

खाना खाने के बाद थकान को दूर करने के उपाय

1 हाइड्रेटेड रहें

शरीर को निर्जलीकरण और सुस्ती से बचाने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पीएं। इससे शरीर में ऑक्सीजन का स्तर उचित बना रहता है।

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शरीर को निर्जलीकरण और सुस्ती से बचाने के लिए भरपूर मात्रा में पानी पीएं। इ

2. पोर्शन साइज कंट्रोल रखें

एक बार में अधिक मात्रा में खाना खाने से बचें। छोटे प्लैटर लेने से शरीर में एनर्जी का लेवल बना रहता है और पोषण की प्राप्ति होती है।

3. अपनी नींद पूरी करें

भरपूर नींद लें। इससे दिनभर होने वाली थकान से बचा जा सकता है। नींद की गुणवत्ता बढ़ने से ओवरऑल हेल्थ को फायदा मिलता है।

4. रेगुलर एक्सरसाइज करें

वर्कआउट को मिस करने से भी शरीर में थकान बनी रहती है। रोज़ाना एक्सरसाइज़ करने से शरीर एक्टिव और हेल्दी रहता है।

5. ट्रिप्टोफैन वाले आहार लेने से बचें

ऐसे आहार जिन्में ट्रिप्टोफैन की मात्रा अधिक होती है। उन्हें लेने से बचें। सोयाबीन, चिया सीड्स, पंपकिन सीड्स, चिकन और चीज़ में इसकी अधिक मात्रा पाई जाती है।

6. तनाव कंट्रोल करें

हर छोटी बात पर होने वाले तनाव से बचकर शरीर को संतुलित रखने में मदद मिलती है। खाना खाने के बाद थकान से बचने के लिए मेडिटेशन और योग से दिन की शुरूआत करें। इसके अलावा शरीर को रिलैक्स रखने का प्रयास करे।

7 अपना ब्लड टेस्ट करवाएं

शरीर में खून की कमी थकान और कमज़ोरी को बढ़ा देती है। ऐसे में डॉक्टर की सलाह से ब्लड टेस्ट अवश्य करवाएं। इससे शरीर में बढ़ने वाली पोषक तत्वों की कमी की जानकारी मिलने लगती है, जिससे व्यक्ति इस समस्या से बच सकता है।



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Soya Chaap : एक आहार विशेषज्ञ से जानते हैं वेजिटेरियन्स के लिए सोया चाप हेल्दी है या नहीं

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सोया में पाए जाने वाले मिनरल्स की वजह से लोग सोया चाप (Soya Chaap) को भी हेल्दी बताते हैं। लेकिन इसके फायदे के साथ इसके कुछ नुकसान भी हैं।

सोयाबीन का नाम आपने जब भी सुना होगा, यह सुना होगा कि वे न्यूट्रीएंट्स (Nutrients) का भंडार हैं, उनमें मिनरल्स अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। प्रोटीन, विटामिन, जिंक, कैल्शियम और न जाने क्या क्या। यह सही भी है, सोया हमारे स्वस्थ रहने के लिए एक जरूरी खाद्य पदार्थ है। लेकिन इससे बनता है एक और प्रोडक्ट, जिसे सोया चाप कहते हैं। लोग अक्सर सोया में पाए जाने वाले मिनरल्स की बातें कर के इसे खाना हेल्दी बताते हैं। अपने इन्हीं गुणों की वजह से सोयाबिन हृदय संबंधित बीमारियों के लिए भी फायदेमंद बताया जाता है। लेकिन बात इतनी भर नहीं है, इसके फायदे के साथ इसके कुछ नुकसान (soya chaap ke fayde aur nuksan) भी हैं। खासकर सोया चाप के, तो चलिए शुरू करते हैं। 

क्या है सोया चाप (What is Soya Chaap)

सोयाचाप एक शाकाहारी डिश है जो अमूमन सोया प्रोटीन से बनती है। मांस-मछली से दूर रहने वाले अर्थात शाकाहारियों के लिए यह एक अच्छा ऑप्शन है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स या फिर फाइबर-कैल्शियम सब अच्छी मात्रा में होते हैं। स्वाद के मामले में भी ये अव्वल है। इसलिए अगर आप वेज हैं, तो यह आपके लिए सुपरफूड हो सकता है।

सोया चाप खाने के फायदे (Benefits of Soya chaap)

1. प्रोटीन का स्रोत (Source for Protein)

सोयाबिन में प्रोटीन अच्छी मात्रा में होता है ये मेडिकली वेरीफाइड है। कई बार प्रोटीन की कमी से जूझते लोगों को डॉक्टर्स सोया से जुड़ी डिश खाने की सलाह भी देते हैं। दरअसल, प्रोटीन हमारे शरीर की मरम्मत का जिम्मा सम्हालता है। मांसपेशियों के विकास और चोटिल मांसपेशियों को ठीक करने की जिम्मेदारी प्रोटीन की ही होती है। ऐसे में मांसपेशियों से जुड़ी समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए सोया चाप एक अच्छा ऑप्शन है। शरीर को प्रोटीन मिलना Soya Chaap Ke Fayde में से एक है। 

2.  स्वस्थ हृदय के लिए (Soya for Healthy Heart) 

यह हम सबको पता है कि जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ता है तो दिल की बीमारियों से जुड़े खतरे भी बढ़ जाते हैं। सोया चाप ऐसे वक्त में आपकी मदद कर सकता है। दरअसल सोया से जुड़े प्रोडक्ट्स शरीर में कोलेस्ट्रॉल कम करते हैं जिससे दिल की बीमारियों से जुड़े खतरे भी कम हो जाते हैं। 

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3.  वजन कंट्रोल करने में मददगार (Soya for Weight Control)

फैट यानी वसा ऐसी चीज है जो शरीर के लिए जरूरी भी है लेकिन इसके बढ़ने से वजन बढ़ने का खतरा भी मंडराने लगता है। सोया से मिलने वाला प्रोटीन इसे कंट्रोल करने में आपकी मदद कर सकता है। सोया प्रोटीन शरीर से अतिरिक्त फैट को हटाता है, जिससे वजन बढ़ने का खतरा अपने आप कम होने लगता है। इसके साथ ही मांसपेशियों को मजबूत करने वाला सोया प्रोटीन का गुण भी वजन कंट्रोल में रखने के लिए सहायक है क्योंकि अगर आपकी मांसपेशियाँ मजबूत रहती हैं तो वजन बढ़ने का खतरा कम हो जाता है। 

4. हड्डियां होंगी मजबूत (Soya for Healthy Bones)

हमारे शरीर की हड्डियों के लिए कैल्शियम कितना जरूरी है, यह बताने की भी बात नहीं। नॉर्मल हड्डी की चोट में भी डॉक्टर्स कैल्शियम की गोली खाने को दे ही देते हैं। सोया इस मामले में प्राकृतिक तौर पर अमीर है क्योंकि सोया प्रोडक्ट्स में कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में मिलता है, इसी की वजह से सोया से बने डिश खाने में हड्डियों को अतिरिक्त ऊर्जा और पोषण मिलते हैं। 

कैसे खाएं सोया चाप? (How to eat Soya Chaap)

soya chaap kaise khaein
सोया चाप खाने के सही तरीके। चित्र शटरस्टॉक।
  1. सोया चाप को खाने से पहले ये सुझाव दिमाग़ में बिठा लें कि इसे बहुत ज्यादा मात्रा में नहीं लेना है। अगर आप इसे खाने के तौर पर नहीं ले रहे हैं तो दिन भर में एक या दो बार सोयाचाप खाना पर्याप्त है, अगर आप इसे ज्यादा खाएंगे तो पेट की समस्याओं के शिकार होंगे। 
  2. इसके अलावा यह भी कोशिश करनी है कि सोया चाप तला हुआ ना हो, गिल करके या बेक करके खाने में सोया चाप के मिनरल्स बचे रह जाते हैं और ये आपको फायदे के अलावा नुकसान नहीं पहुंचाते। 
  3. अगर आप पहले से पेट की समस्याओं से जूझ रहे हैं तो इस बात का ख्याल रखें कि थोड़ा-थोड़ा सोया चाप खाने से शुरुआत करें और पानी ज्यादा पियें। 
  4. एक अंतिम लेकिन जरूरी बात, कम प्रोसेस्ड सोया चाप ही खाने के इस्तेमाल में लाएं। कंपनियां इन दिनों सोया को ज्यादा प्रोसेस करके मार्केट में उतार रही हैं,जिसके नतीजतन उसमें शुगर,नमक ज्यादा रहता है। यह डायबिटिक या हाई ब्लडप्रेशर वाले लोगों के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं है। 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

डाइटीशियन चिराग बड़जात्या के अनुसार,

सोया चाप सोयाबीन से बनाया जाता है जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। ये प्रोटीन का एक बेहतरीन स्रोत हो सकता है, लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब सड़क पर बेचने वाले या रेस्टोरेंट्स वाले इसको नरम और फूला हुआ बनाने के लिए इसमें बहुत सारा मैदा मिला देते हैं। सोया चाप में मैदा आपके शरीर में अनावश्यक कैलोरी बढ़ा सकता है जिससे आपको नुकसान पहुंचेगा।  कुछ लोग स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें बहुत सारी मेयोनेज़ भी मिलाते हैं, जिससे सोया चाप आपके दिल के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायी हो जाता है क्योंकि मेयोनेज़ में फैट की मात्रा बहुत अधिक होती है। चिराग के अनुसार, अगर आप बाहर सोया चाप खाना पसंद करते हैं तो मेरी सलाह है कि महीने में सिर्फ एक बार ही खाएं। लेकिन अगर आप इसे घर पर बना रहे हैं तो रोजाना इसका लुत्फ उठा सकते हैं।

सोया चाप के नुकसान (Harmful Effects of Soya Chaap)

  1. सोया में फाइबर की मात्रा ज़्यादा होती है। और जब आप चाप तल कर बनाते हैं तो यह फाइबर हानिकारक बन सकता है। फाइबर की ज़्यादा मात्रा आपके पेट में पाचन (Digestion) सम्बंधी समस्याएं पैदा कर सकता है।
  2. ये समस्या अक्सर महिलाओं में ज़्यादा होती है। दरअसल, सोया में फाइटोएस्ट्रोजन होता है जिसको ज्यादा मात्रा में खाने से महिलाओं में हार्मोनल इम्बैलेंस (Harmonal Imbalance) जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसी कारण महिलाओं के पीरियड्स वक्त पर नहीं आते। कभी कभी वजन बढ़ जाने का ख़तरा भी होता है। 
  3. कुछ भी नया खाने को ट्राई करने से पहले आपको किससे एलर्जी है, इस बारे में जानना ज़रूरी है। इसी तरह कुछ लोगों को सोया प्रोडक्ट्स से एलर्जी हो सकती है।
  4. कई बार बाज़ार में मिलने वाले सोया प्रोडक्ट्स ज्यादा प्रोसेस्ड होते हैं,जिसमें आर्टिफिशियल फ्लेवर ऐड होते हैं। यह शरीर के लिए नुकसानदायक है।
  5. सोया प्रोडक्ट्स को अगर आप ज्यादा मात्रा में खा रहे हैं तो आपको थायरॉइड की प्रॉब्लम्स हो सकती है,जिससे हाइपोथायरॉइड जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

कुल जमा बात यह है कि सोया चाप के नुकसान भी हैं और फायदे भी। लेकिन यह निर्भर आप पर करता है कि आप इसके फायदे लेना चाहते हैं या नुक़सान। यह सब ज़्यादातर निर्भर इस पर करता है कि आप इसे किस मात्रा में ले रहे हैं। खाने-पीने की चीजों में असंतुलन आपको स्वास्थ्य सम्बंधी गम्भीर समस्या दे सकता है। इसलिए सावधानी ज़रूरी है।

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knee replacement : घुटने के दर्द से आराम दिलाएगा घुटने का प्रत्यारोपण

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हड्डियों और जोड़ों का दर्द इन दिनों कॉमन होता जा रहा है। महिलाओं में उम्र बढ़ने के साथ साथ यह स्थायी होता जाता है। कई बार तो यह उस लेवल पर पहुंच जाता है, जहाँ दवाइयों से भी यह दूर नहीं होता। यही वजह है कि डॉक्टर नी ट्रांसप्लांट की सलाह देते हैं। जानिए कितनी सुरक्षित है ये प्रक्रिया।

लोग अक्सर बढ़ती उम्र के साथ या किसी हड्डी की चोट के साथ मिले दर्द को यह मान कर सहते रहते हैं कि यह किस्मत है। पैर में दर्द ही तो हो रहा है,ज़िन्दगी तो नहीं खतरे में है? लेकिन सवाल यह है कि ज़िन्दगी तो बची है लेकिन यह किस तरह की जिंदगी है जहाँ आप भाग कर बस ना पकड़ सकें। ना ही किसी बच्चे के साथ थोड़ी देर खड़े हो कर खेल पाएं। ऐसे ही किसी सवाल से जूझते हुए किसी डॉक्टर या साइंटिस्ट ने पहली बार किसी मरीज़ के घुटने खोले होंगे और उसमें आर्टिफिशियल जॉइंट लगा दिए होंगे। वो थक गया होगा दवा देते देते और मरीज़ थक गया होगा दवा खाते खाते। आज के ज़माने में हम उसे हिंदी में घुटने का प्रत्यारोपण कहते हैं और अंग्रेज़ी में उसे knee replacement कहा जाता है? कैसे और कब किया जाता है घुटने का ये प्रत्यारोपण और क्या ये सेफ है? किन लोगों को इसके लिए आगे बढ़ना चाहिए और किन्हें इससे बचना चाहिए। आज सब विस्तार से समझेंगे।

क्या होता है घुटना प्रत्यारोपण? (What is knee replacement)

घुटने का प्रत्यारोपण (knee replacement) किसी सर्जरी की तरह ही होता है। इसमें घुटने की प्रभावित जगह को या जहाँ डैमेज है उस जगह को आर्टिफिशियल जॉइंट से जोड़ दिया जाता है। यह उन लोगों के लिए ही डॉक्टर रिकमेंड करते हैं जिनके ऊपर दवाईयां बेअसर हों या उनकी चोट इतनी गहरी हो कि बगैर ट्रांसप्लांट उनका इलाज नहीं हो सकता। 

कब होता है नी रिप्लेसमेंट 

1.दवाइयां हों बेअसर (If Medicines are not working)

अगर घुटने में इतना दर्द हो कि चलने-फिरने, बैठने-उठने, और सामान्य नॉर्मल एक्टिविटीज भी कठिन लगने लगें और ये दर्द दवाइयों और इलाज़ से ठीक ना हो रहा हो।

  1. ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis)

नी ट्रांसप्लांट का सबसे आम कारण है। दरअसल इसमें घुटने की हड्डियों के बीच मौजूद कार्टिलेज घिस जाता है और हड्डियां आपस में रगड़ने लगती हैं।

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चित्र- अडोबी स्टॉक

इसी वजह से बुढापे में अक्सर घुटनों में सूजन और दर्द होने लगता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस के ज्यादातर केसेस में डॉक्टर नी रिप्लेसमेंट (knee replacement)  रिकमेंड करते हैं।

3.रूमेटॉइड आर्थराइटिस (RA)

ये एक ऐसी ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम अपने ही टिशूज और जॉइंट्स को नुकसान पहुंचाने लगता है। बार बार हार्मोनल चेंजेज से गुजरने के कारण यह बीमारी महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होती है।

चित्र- अडोबी स्टॉक

इसका ज़्यादातर प्रभाव जोड़ों पर ही पड़ता है। परिणामस्वरूप दर्द और सूजन हो जाते हैं। इस केस में भी डॉक्टर्स नी रिप्लेसमेंट (knee replacement) रिकमेंड करते हैं।

  1. चोट या फ्रैक्चर (Knee Fracture)

कई बार यह भी हो जाता है कि कोई फ्रैक्चर ऐसा हो जिससे हमारा घुटना उबर ना सके। या कोई चोट इतनी गम्भीर हो जो दवाइयों से नहीं ठीक हो रही हो और मरीज़ का दर्द बढ़ता ही जा रहा हो। ऐसी सूरत में भी नी रिप्लेसमेंट (knee replacement) किया जाता है।

क्या सेफ है नी ट्रांसप्लांट? (Is Knee Transplant Safe?)

ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉक्टर वत्सल खेतान के अनुसार यह प्रक्रिया पूरी तरह सेफ है। इसकी सफलता की दर लगभग 90-95 परसेंट है। फिर यह मरीज़ के शरीर पर भी निर्भर करता है। उन्होंने बताया कि इस रिप्लेसमेंट (knee replacement) में लगभग एक डेढ़ घण्टे लगते हैं। सर्जरी के कुछ दिन बाद मरीज़ पूरी तरह से अपने पैरों पर चल सकता है।

नी रिप्लेसमेंट के ख़तरे क्या? (Harmful Effects of knee replacement)

  1. ट्रांसप्लांट के बाद अक्सर इंफेक्शन होता है। डॉक्टर्स इसको रोकने के लिए दवाएं देते हैं लेकिन दवा खाने में थोड़ी भी लापरवाही बड़ी समस्या दे देती है।

2.सर्जरी के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग की समस्या से अक्सर डॉक्टर जूझते हैं। हालांकि यह समस्या कंट्रोल की जा सकती है लेकिन कई बार इसका परिणाम कमज़ोरी के तौर पर सामने आता है।

  1. नी रिप्लेसमेंट (knee replacement) एक सर्जिकल प्रॉसेस है जिसमे घुटने के आसपास की नसों को नुकसान होने का खतरा भी होता है।
  2. कुछ लोगों को आर्टिफिशियल जोड़ (Artificial Joint) के मटेरियल से एलर्जी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
  3. जैसा डॉक्टर वत्सल खेतान ने कहा कि इलाज़ हमेशा मरीज़ की परिस्थितियों पर डिपेंड करता है, उसी तरह कुछ मरीजों को सर्जरी के बाद भी दर्द की समस्या हो सकती है। ऐसा होने पर तुरन्त अपने डॉक्टर से मिलें।
  4. ट्रांसप्लांट (knee replacement) के बाद अक्सर पैरों में ब्लड क्लॉटिंग का खतरा होता है। डॉक्टर इसी लिए खून को पतला करने की दवाई देते हैं।

किन्हें नहीं कराना चाहिए घुटने का प्रत्यारोपण? (When and Who Should not to go with Knee Replacement?)

  1. जिनके घुटने में पहले से इंफेक्शन हो उन्हें इससे बचना चाहिए क्योंकि सर्जरी की वजह से इन्फेक्शन फैल सकता है।
  2. डायबिटीज और हार्ट पेशेंट्स को भी नी ट्रांसप्लांट (knee replacement) नही कराना चाहिए।
  3. जिनका वजन ज्यादा हो, उन्हें यह ट्रांसप्लांट नहीं कराना चाहिए क्योंकि वजन के कारण सारा भार घुटनों पर ही आता है।
  4. जिन लोगों की हड्डियां ज्यादा कमज़ोर होती हैं,डॉक्टर उन्हें भी घुटने के ट्रांसप्लांट के लिए मना करते हैं।
  1. जिन लोगों को डिमेंशिया, अल्जाइमर या किसी भी तरह का दिमागी रोग हो और वो पोस्ट सर्जरी अपनी देखभाल या सावधानियां डॉक्टर के अनुसार ना बरत सकें, उन्हें इस सर्जरी से बचना चाहिए।

क्या नी ट्रांसप्लांट घुटनों के दर्द से पूरी तरह निजात दिला सकता है?

इसमें कोई शक नहीं कि नी ट्रांसप्लांट (knee replacement)  घुटने के तेज़ दर्द और काम करने में मुश्किलों से राहत देने में मदद कर सकता है, खासकर जब दर्द और सूजन दूसरे इलाजों से ठीक न हो रही हों। हालांकि भले ही घुटने का प्रत्यारोपण दर्द खत्म करता हो लेकिन कई बार ये पुरानी बीमारियाँ या जीन से मिलीं हड्डियों की दिक्कतें दूर नहीं कर पाता। इस सर्जरी की सफलता की रेट तो 90 प्रतिशत से ऊपर है लेकिन इससे आपका दर्द पूरी तरह जाएगा या नहीं ये आपकी स्थिति और आपके डॉक्टर पर निर्भर करता है।

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नींद की गोलियों के साइड इफेक्ट्स – Sleeping pills ke health risks

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अमेरिकन साइकेट्रिक असोसिएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के एक तिहाई वयस्क किसी ना किसी तौर पर नींद आने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं। यह सच है कि मेडिकल फील्ड में लगातार दवाओं के आविष्कार ने उनकी राह आसान की है लेकिन क्या यह दवाएं सेफ हैं? तब जब उनमें से कुछ दवाएं लोगों के लिए नशे की तरह बनती जा रही हैं जिनके बगैर उन्हें नींद ही नहीं आती। आज सोने की इन्हीं दवाओं(Sleeping Pills) पर करेंगे बात, कैसे काम करती हैं ये और इनके फायदे क्या और नुकसान क्या हैं?

क्या हैं स्लीपिंग पिल्स (What are Sleeping Pills)

स्लीपिंग पिल्स वह दवाईयां हैं जो नींद की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए बनाई गई हैं। ये दवाईयां नींद लाने में या फिर नींद को बेहतर बनाने के लिए डॉक्टर्स मरीजों को देते हैं जिन्हें इस तरह की समस्याएं होती हैं।।स्लीपिंग पिल्स दरअसल, दिमाग के केमिकल्स पर अपना असर दिखाते हैं,जिनकी वजह से नींद आने में बाधा हो रही होती है। ये पिल्स उन केमिकल्स को कंट्रोल कर उन्हें शांत करते हैं जिसके बाद नींद में कोई बाधा नहीं रह जाती।

क्यों पड़ती है स्लीपिंग पिल्स की ज़रूरत? (When Sleeping peels are needed)

स्लीपिंग पिल्स या नींद की गोलियां उन लोगों के लिए ज़रूरी हो सकती हैं जो सोने में नींद लाने में परेशानी का सना कर रहे हैं। नींद से सम्बंधित कोई भी बीमारी में ये काम आती है, चाहे वो अनिद्रा हो या फिर बार-बार नींद खुल जाने की समस्या। यहां यह बात भी समझनी ज़रूरी है कि डॉक्टर उन्हें ही नींद की गोली खाने की राय देते हैं जिनकी नींद की समस्या ज़्यादा सीरियस हो और जिसका असर उनकी दिनचर्या पर पड़ रहा हो। अगर किसी को नींद कम आ रही या फिर आ ही नहीं रही है तो इसका असर उसके हेल्थ पर पड़ना लगभग तय है। जैसे अगर आपको रात में केवल 3-4 घण्टे ही नींद आती है तो आप की समस्या गम्भीर है। डॉक्टर आपको कुछ समय के लिए ही सही लेकिन नींद की दवाई दे सकता है।

कितने तरह की होती हैं स्लीपिंग पिल्स (Type of Sleeping Pills)

उजाला सिग्नस फाउंडेशन के डायरेक्टर डॉक्टर शुचिन बजाज के अनुसार, स्लीपिंग पिल्स के असर के हिसाब के उन्हें तीन तरह से बांटा जा सकता है। जैसे-
1.बेंजोडायजेपाइन
ये गोलियां तुरन्त असरदार होती हैं और जल्दी नींद लाने के लिए खाई जाती हैं। हाँ लेकिन इनका लंबे समय तक इस्तेमाल आपको इसके साइडइफ़ेक्ट्स ( Sleeping pills side effects)  दे सकता है और एक वक्त आएगा जब नींद के लिए पूरी तरह से इसी पर निर्भर हो जाएंगे।
2.नॉन बेंजोडायजेपाइन
ये गोलियां बेंजोडायजेपाइन की तुलना में कम असरदार होती हैं। इन गोलियों के इस्तेमाल स इसपर निर्भरता के कम खतरे हैं और इसके साइडइफेक्ट्स(Sleeping pills side effects) भी कम हैं।
3.हिस्टामाइन-2 रिसेप्टर एंटागोनिस्ट्स
ये गोलियां डायरेक्ट नींद लाने में मदद ना कर नींद को प्रोत्साहित करती हैं। यह पहले दो गोलियों के मुकाबले कम हानिकारक और कम नशे के खतरे के सारे पैरामीटर को पूरा करती हैं।

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नींद की गोलियों के नुक़सान (Sleeping Pills Side Effects)

1. नींद पर असर
अगर आप स्लीपिंग पिल्स ले रहे हैं तो मुमकिन है कि आप नॉर्मल नींद ना ले सकें। कभी ये हो सकता है कि आप रात में नींद से उठकर चौंक पड़ते हैं और खूब सोने के बावजूद आपको नींद ना पूरी होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ये इसके साइडइफ़ेक्ट्स (Sleeping pills side effects) में से प्रमुख है। 
2. बहुत ज्यादा नींद
जाहिर है स्लीपिंग पिल्स इसीलिए बनी हैं कि खाने वाले को नींद आए। लेकिन बिना डॉक्टरी सलाह के अगर आप नींद की गोली ले रहे हैं तो आपको बहुत ज्यादा नींद लगने की भी शिकायत हो सकती है।
3.दिमागी समस्याओं का जन्म
स्लीपिंग पिल्स का लंबे समय तक इस्तेमाल आपके दिमाग की सेहत के लिए ठीक नहीं है। आपमे चिड़चिड़ापन, गुस्सा जैसी समस्याएं सिर उठा सकती हैं। इसके अलावा,आपको याददाश्त की भी दिक्कतें हो सकती हैं।
3. मानसिक समस्याएं
स्लीपिंग पिल्स के सेवन से रात भर नींद की गहरीता पर असर पड़ सकता है, जिससे व्यक्ति का चौंकने, रात भर जागने, या नींद न पूरी होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
4. लिवर और किडनी को बड़ा डैमेज
बिना डॉक्टरी सलाह के अगर आप रोज की नींद की गोली खाने लगे हैं तो रुक जाइये। इसके परिणाम आपके लिवर और किडनी तक भी जा सकते हैं। रोज़ नींद की गोली आपके किडनी और लिवर को फेल्योर तक भी ले जा सकती है।

डॉक्टर से कब मिलें? (Sleeping pills side effects)

डॉक्टर शुचिन बजाज ने हम से दो चार परिस्थितियों को साझा किया जब नींद की गोली खाने से लोगों को बचना चाहिए क्योंकि डॉक्टर से मिलने का वक्त आ गया उनका। जैसे-
1. जब आपको लग रहा हो कि आप रोज़ स्लीपिंग पिल्स खाने लगे हैं और इसके बगैर आपको नींद नहीं आ रही।
2. स्लीपिंग पिल्स लेने के बाद उल्टी और चक्कर आ रहा हो तो तुरन्त डॉक्टर से मिल लें।
3.स्लीपिंग पिल्स लेने के बाद भी अगर जगे हुए रहते हैं तो यह बड़े खतरे की आहट है। इसका मतलब नींद की गोली का असर आप पर नहीं हो रहा है। ऐसे में लोग डोज़ बढ़ा देते हैं लेकिन ज्यादा अच्छा और सुरक्षित ऑप्शन डॉक्टर से मिल लेना ही है।
4.जिन्हें पहले से ही हार्ट, लिवर या किडनी जैसी कोई समस्या हो वे डॉक्टर से पूछे बगैर स्लीपिंग पिल्स इस ना खाएं।
कुल मिला कर नींद की गोली का ईजाद आसानी बनने के लिए किया गया था ना कि उनका ओवरयूज आपको नुकसान पहुँचा जाए। डॉक्टर की सलाह के बगैर नींद की गोली लेना मतलब अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। इसलिए अपने जीवन का ख्याल रखिये।

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